जीने का मजा ही किरकिरा कर देता है
बचपन का डर फिर भी ठीक था
पढाई और होमवर्क का डर
जैसे जैसे बडे हुए
डर का दायरा बढता गया
रास्ते पर चलने से डर
छेड़खानी से डर
किसी से बात करने से डर
कोई क्या कहेगा
इस बात का डर
क्या पहनना - ओढना
कहाँ जाना - आना
सब पर दूसरों की मर्जी
ब्याह होने पर ससुराल वालों का डर
सास , नन्द, जेठानी का तो होता ही है
सबसे ज्यादा जीवनसाथी से डर
कहाँ साथ देगा कहाँ नहीं
समाज का परिवार का अडोस - पडोस का
रिश्तेदारों का सगे - संबंधियों का
ऐसे न जाने कितने डर से डरते हुए
आज जब उमर बीती तब
बुढापे का डर
बीमारी का डर
बच्चों से डर कि कैसा रखेंगे
आनेवाले दिन कैसे रहेंगे
मौत कैसे आएंगी
जिंदगी से तो डरते ही रहें
मृत्यु से भी डर
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