मैंने सोचा अपने पितरों को याद करूँ
इस कडी में एक नाम आया वह हमारी आजी तलुका देवी
छोटी सी गोल - मटोल नाटे कद की
बिना ब्लाउज के एक साडी लपेटे रहती
हंसती तो खिलखिलाकर
रात को कहानी सुनाती
कौआ हकनी और सारंगी - सदावृक्ष की
अपने साथ गाँव में जिसके घर जाती तो ले जाती
एक बार क्या हुआ
हमारी फुआ है गायत्री फुआ
उनका देवर मिलने आया था जहानागंज बाजार में
हम तीनों लोग गए इक्का पर बैठकर
अब फुआ तो अपने देवर को एक जगह ले जाकर बात करने में मशगूल
आजी बोली
जाये दा ओके बतियावे दा
हमहन पकौड़ी लेके खाइब
आजी ने पकौडी लिया और मुझे खिलाया
उसके बाद हम लोग खूब हंसे
फुआ के लिए रखा ही नहीं
पकौड़ी तो बहुत खाई पर आजी की दिलाई हुई वह पकौड़ी कभी नहीं भूलती ।
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