मैंने सूरज को ढलते भी देखा है
उनके उदय की प्रतीक्षा करते भी देखा है
उनको प्रणाम करते भी देखा है सबको
संझा को उनके जाने की प्रतीक्षा करते भी देखा है
क्योंकि यह कर्म से जुड़े हुए हैं
जैसे ही उगते हैं
सब काम पर लग जाते हैं
जैसे ही अस्त होते है
सब विश्राम की सोच लेते हैं
पंछी अपने घोंसलों की तरफ
पशु अपने घर की तरफ
मनुष्य का भी यही हाल
क्या सब स्वार्थ से जुड़े हैं
जिसके आने की प्रतीक्षा उसके जाने की भी प्रतीक्षा
शायद नहीं
प्रकृति का नियम है
जो आया है उसको तो जाना ही है
जन्म और मृत्यु दोनों का उत्सव
एक समय जो आपकी तूती बोलती थी
आज कोई देखने और सुनने वाला नहीं
उदयाचल के सूर्य को सांझ को अस्तांचल का रास्ता दिखा दिया जाता है
भगवान भास्कर फिर आते हैं उदित होकर
आत्मा भी तो यही करती है
आज इस शरीर में तो कल किसी और जगह
अमरता का वरदान तो किसी को नहीं
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