Thursday, 8 February 2024

आज का आदमी

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध 
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनके भी अपराध
दिनकर जी की यह पंक्तियाँ सभी के लिए हैं 
हम थे क्या और हो क्या गए हैं 
मशीन और पत्थर बन रह गए हैं 
मानवीय संवेदना मर सी गई है
अपने आप में सिमट कर रह गये हैं 

कोऊ होऊ नृप हमें का हानि
चेरी छाडि न होइओ रानी

हमको क्या पडी है किसी से
पडोसी के घर आग लगी है हमारे यहाँ नहीं 
उस आग की लपटें तो हम तक भी आएंगी 
देश में राजनीति में  समाज में 
यहाँ तक कि अपने घर में भी
सब अपने में मस्त 
कहने को परिवार 
रहते हैं जैसे अजनबी
हमारा सब काम हो रहा है ना
और जाएं भाड़ में 

 हम सब देख कर मूक दर्शक बने हैं 
आने वाली पीढ़ी इसका जिम्मेदार हमें भी मानेगी ही 
हम डरपोक और कायर हो गए हैं 
लालची और स्वार्थी बन गए हैं 
अपनेपन और मैं में सिमट कर रह गए हैं 
मशीनी युग में मशीन हो गये हैं 
भावनाओं और विचारों से परे हाड- मांस का इंसान ।

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