Friday, 2 February 2024

माया मोह से जकड़ा इंसान

आज बाबूजी याद आए
उनके साथ ही माँ भी याद आई
वे तो इस दुनिया में नहीं रहें 
माँ है उनकी जीवनसंगिनी 
उनके साथ डट  कर खडी रहने वाली
अब वह बूढी हो गई है
उसके पास शक्ति नहीं 
जो कभी हमको सहारा देती थी 
आज स्वयं सहारे के हैं 
देखा नहीं जाता 
माँ का मजबूत रूप देखने की आदत है
वह कुछ पूछती है 
तो झल्ला जाती हूँ 
जब देखो मरने की बात करती है
उसको झिडक देती हूँ 
जब देखो तब यही बात 
लेकिन सत्य तो है
वास्तविकता से मुख कैसे मोडे 
उनकी तकलीफ तो वो ही जानती होगी
आज भी उसको काठी के सहारे नहीं चलना है
गिर भले जाएं पर हाथ में लाठी नहीं 
जो काफी का सहारा न लेना चाहे 
वह कैसे सब स्वीकार करेंगा
मैं हंसती हूँ 
कहती हूँ 
मैं तेरी बेटी हो स्टिक का इस्तेमाल करती हूँ 
तू नहीं कर सकती
पर नहीं तो नहीं 
बहुत जिद्दी है वह
मजबूत भी है मन से
तभी तो बिना डांटे- फटकारे उसके बच्चे सही राह पर चले
जीवन संघर्ष क्या होता है 
उससे लडना तो उसने ही सिखाया 
हम घबरा जाते हैं उसको कभी घबराते नहीं देखा 
ईश्वर पर अटूट श्रद्धा 
आज ईश्वर से प्रार्थना कर रही है
कहती है 
भगवान मुझे भूल गए हैं कि अपने पास बुलाते नहीं 
हम हैं कि उसको जिंदा रखना चाहते हैं 
वह है कि मृत्यु की गुहार कर रही है
अजीब विडंबना जीवन की
शायद यही माया है ।

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