Wednesday, 22 May 2024

घर मेरा

घर था मेरे नाम पर 
उस घर का कोई कोना मेरा नहीं 
जहाँ बैठू सुकून से
आपाधापी कर बना घर 
दौड़ते रहें जिसकी खातिर 
आज उसमें रहकर भी लगता है 
बेघर हैं 
अपना नहीं जहाँ कुछ 
प्रेम और भाव है आहत 
दिल नहीं लगता वहाँ 
लगता है 
कहीं दूर निकल चले 
नीले आसमान के तले 

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