Saturday, 25 May 2024

आदमी का आना - जाना

कहते हैं कि आदमी अकेला आता है
अकेला जाता है
लगता है यह सही नहीं है

आदमी जब आता है 
तब रोते हुए आता तो है लेकिन दूसरों के मुख पर मुस्कान लाता है
न जाने कितनी आशा - आंकाक्षाओं के साथ आता है
किसी का चिराग तो किसी का जिगर का टुकड़ा 
न जाने कितनी प्राथनाओं और दुआ के बाद 
जीवन का उद्देश्य बन जाता है
जीवन जीना सिखा जाता है

आदमी जब जाता है 
तब भी अकेले नहीं जाता 
लोगों की ऑख में ऑसू डालकर जाता है
किसी को बेसहारा कर जाता है
किसी का सुख - चैन छीन कर जाता है
किसी की मुस्कान को खत्म करके जाता है
किसी को जीवन भर रोने के लिए छोड़ जाता है 

यह आना - जाना हालांकि लगा रहता है
आदमी वह मुसाफिर है 
जिसकी यात्रा उसके आने से शुरू होती है 
खत्म जाने के बाद 
सच यह है कि कुछ खत्म नहीं होता 
वह जिंदा रहता है 
यादों में  
वह मर जाता है लेकिन उससे जुड़े लोग रहते हैं 
और जब तक ऐसा है
तब तक वह अपनों के बीच विद्यमान रहता है
शरीर से न सही और सब कुछ में 

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