Monday, 2 September 2024

अकेले

मैं जिंदगी भर भटकता रहा
कुछ पाने के सुकून में
इस शहर से उस शहर
एक घर की तलाश में
एक छत हो सर पर
उसके नीचे खुशियो का आलम हो
छत तो मिली 
खुशी फिर भी ना मिली
घर तो बना 
उसमें रहने वाले ना रहे 
हम फिर अकेले ही रह गए 

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