Wednesday, 12 March 2025

चलना मत छोड़ना

हमारे कदमों के नीचे गलीचा नहीं बिछा था 
हमें जमीन पर चलने की आदत थी 
पैर जमीन पर रखने से मैले हो जाने का डर नही था 
राहें भी समतल नहीं थी 
उबड़ खाबड़ और कंकड़ पत्थर बिछे थे 
हमको उसकी भी आदत नहीं थी 
फिर भी हम चले , चलते रहे
कंकरीली  - पथरीली पर
उसे आसान बनाया 
ऐसा नहीं कि पत्थर चुभे नहीं
पैर में छाले नहीं पड़े 
आँख से ऑसू नहीं छलके 
दर्द नहीं हुआ 
सबको झेला पर रुके नहीं 
बस चले और चलते रहे 
उस मुकाम पर भी पहुंचे 
जहाँ तक पहुंचना था 
आज वह याद आते हैं 
बस ओठों पर एक मुस्कान आती है 
राह तो आसान नहीं होती 
बनाना पड़ता है 
फूल नहीं बिछे मिलते सभी को 
कांटों से भी सामना होता है 
बस चलना मत छोड़ना 

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