Sunday, 31 January 2016

सूर्योदय का ही नहीं सूर्यास्त का भी इंतजार करते हैं

सामने सूर्यदेव अस्त हो रहे थे खानोशी छाई हुई थी
पेड -पौधै सब शॉत खडे थे
कभी -कभी थोडा सा हिल उठते थे
पत्तों में रूक रूक कर सरसराहट हो जाती थी
ऐसा लग रहा था नीरवता ही जीवन है
जीवन भी शायद ऐसा ही है
जब जन्म होता है तो खुशियॉ मनाई जाती है
गाजे -बाजे और मिठाईयॉ बॉटी जाती है
आए हुए मेहमान का खुशी -खुशी स्वागत किया जाता
वही सांध्य बेला में थम सा जाता है
चारो तरफ शॉति छा जाती है
पास रहकर भी कोई पास नहीं रहता
अपने ही अपने नहीं रह जाते
सब स्वंय में रम जाते हैं
उनका अपना भी तो जीवन है
मन में कुछ चलता रहता है
कभी जीवन का इंतजार रहता था तो कभी मृत्यु का
जब स्वंय का शरीर ही साथ न दे तो दूसरे से कैसी अपेक्षा
पता नहीं कैसे अमरता का वरदान चाहते थे
क्या होगा अमर होकर
उदय के साथ अस्त भी तो होना है
वाणी जो एक समय गर्जना करती थी लडखडाने लगती है
अर्जुन की गांडीव तो वही थी परएक समय आया कि भीलों ने छीन ली
अश्वस्थामा की आत्मा आज भी भटक रही है
देखा जाय तो जीवन का मतलब आना और जाना है

इसलिए तो हमारे यहॉ डूबते सूर्य को भी छठ पूजा नें अर्घ्य दिया जाता है.

यह समय है जो सुबह पूर्व में अपनी भरपूर लालिमा लेकर उदय होता है उसी को अस्ताचल का रास्ता भी दिखा दिया जाता है

अस्त तो हो रहे हैं भगवान भास्कर पर सबको उर्जित कर

यह नहीं भूलना है कि प्रकृति का चक्र है यह .

 

Saturday, 30 January 2016

देश की आधी आबादी को कुछ धर्म स्थलों पर जाने की पाबंदी क्यों?

कब तक परम्परा के नाम पर महिलाओ के अधिकारों का हनन किया जाएगा
शनिदेव के मंदिर में महिलाओं का प्रवेश निषिद्ध
हाजी अली दरगाह पर मनाही
सबरीमाला के मंदिर में रोक
आखिर क्यों  ?
क्या महिलाएँ इंसान नहीं है
सारी परम्पराएं उन्हीं पर क्यों थोपी जाती है
पहले जमाने में शिक्षा से भी वंचित आज विकास के मार्ग पर आगे निकल गई है
ढोल ,गँवार ,शुद्र ,पशु ,नारी
ये सब ताडन के अधिकारी
         या
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
ऑचल में दूध और ऑखो में पानी
         पर आज परिस्थिति अलग है वह अपना हक मॉग रही है
चाहे वह ईश्वर का दरबार हो या फिर पार्लियामेंट
आधी अबादी के साथ असहिष्णुता क्यों
परम्परा के नाम पर कब तक ये ठगी जाएगी
त्याग के नाम पर कब तक अत्याचार सहेंगी
कब बराबरी का हक मिलेगा
अब समय आ गया है कि बेटी को बचाना भी है
उसे पढाना भी है
उसका अधिकार भी दिलाना है
सम्मान और हक घर हो या बाहर हर जगह दिलाना है

Friday, 29 January 2016

देशभक्ति क्या केवल तारीखों में सिमट कर रह गई है

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ही देशभक्ति दिखाई देती है बाकी समय तिरंगे को अलमारी में रख दिया जाता है
अगले दिन सडक पर पडे हुए मिलते हैं
क्या झंडा फहराना हमारी मजबूरी है या राष्ट्रगान के समय खडा रहना और सम्मान देना
छुट्टी मिलने पर लोग खुश होते हैं और न जाने क्या -क्या योजनाएं बनायी जाती है
असल में हम अपने सैनिकों और बलिदानियों को याद करते हैं क्या?
देश भक्ति मन से आना चाहिए न कि थोपा जाना
कल एक मैसेज पढा व्हट्सप पर कि जो दिल को छू गई
सो जाएगी कल लिपटकर तिरंगे के साथ अलमारी में
यह देशभक्ति है साहब  ,
केवल तारीखों पर ही जागती  है
सच में ऐसा ही है क्या ?
कहीं हम भी तो यही नहीं कर रहे हैं.
अगर ऐसा है तो यह अच्छा संकेत नहीं है
अगर देशभक्ति होगी तो फिर हम अपना जान कर स्वच्छता या भ्रष्टाचार नहीं करेंगे
देश का अपमान नहीं सहेगे
अपने देश पर गर्व करेंगे न कि उसकी आलोचना
केवल मरना ही देशभक्ति नहीं है 
एक अच्छा नागरिक बनना भी देशभक्ति है

Thursday, 28 January 2016

भाग्य और कर्म के चक्रव्यूह में फँसा इंसान

हम बचपन में दादी से कहानी सुनाने को कहते तो कहती ,क्या कहानी सुनाउ , कहानी तो हमरे ऊपरे है
फिर शुरू हो जाती थी कहानी
तब उनकी बात का मतलब समझ नहीं आता था पर आज समझ आ रहा है कि हर जिंदगी एक कहानी है
और इस पर जितना लिखा जाय कम ही है
यह एक बार जो शुरू होती है तो अनवरत चलती ही रहती है
अतीत ,वर्तमान और भविष्य के भंवरजाल में जकडा ही रहता है आदमी
संघर्ष और परिस्थितियों को मात करते कुछ आगे बढ जाते हैं तो कुछ योग्यता और मेहनत के बावजूद भाग्य की ठोकरे खाते रहते हैं
हर कोई कदमों के निशान क्यों नहीं छोड जाता
चलता तो हर कोई है
कुछ अर्श पर तो कुछ अर्श पर ही रह जाते हैं
भाग्य हमारी मुठ्ठी में कैद है पर अगर यही सही होता तो हर व्यक्ति कहॉ से कहॉ पहुंच गया होता
पर ऐसा होता नहीं है
यह वही भाग्य है कि महान योद्धा कर्ण जीवन भर उपेक्षित का दंश सहते रहे
पांडवों को जीवन भर भटकाता रहा
दुर्योधन और धृताराष्ट्र के शीश पर हस्तिनापूर का राजमुकुट सजाता रहा.
भगवान राम जो माता कैकयी के वरदान के कारण निर्वासित हुए 
आज भी अयोध्या में उनको अपनी जमीन नहीं मिली है
हॉ उनके नाम पर लोगों ने जरूर सियासत कर अपना मकसद साध लिया है
जब भाग्य भगवान राम का पीछा नहीं छोडा तो
साधारण व्यक्ति और इंसान की क्या बिसात है

Monday, 25 January 2016

गणतंत्र का असली मायने समझना होगा -हैपी गणतंत्र दिवस

आजादी मिली सब खुश
न जाने कितने इंतजार प्रयत्न और बलिदान करना पडा
१८५७ से शुरू हुआ संग्राम १९४७ पर आकर खत्म हुआ   ,यूनियन जैक की जगह तिरंगा फहरा लाल किले पर
जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने
मोहनदास करमचंद गॉधी राष्ट्र पिता बने
हर कोई किसी न किसी पद पर विराजमान हुआ
हमारे नेता हमारी सत्ता हमारा संविधान हमारा झंडा  हमारा गणतंत्र हमारा संसद भवन और हमारी सरकार
गुलामी की जंजीरे कट चुकी थी लोग स्वतंत्र भारत में सॉस ले रहे थे
आजादी तो अंग्रजों से लडकर पा ली पर उसके पश्चात
पाकिस्तान से विभाजन का दंश
चीन से लेकर कारगिल तक की लडाई
आज भी पडोसी का वार झेल रहे है
पडोसी और दुश्मन का वार तो ठीक है पर घर के अंदरूनी लडाई
दुश्मन का साथ दे हमारे मुल्क के लोग
फिर कहा जाय देशभक्ति पर संदेह
सबका कर्तव्य है घर में शॉति स्थापित करना
प्रेम और भाईचारे से रहे
दूसरे का झंडा नहीं अपना झंडा फहराया जाय
क्रिकेट में स्वयं के देश के जीतने पर जश्न न कि पडोसी के   ,  पडोसी को मिलकर मुंहतोड जवाब देना न कि शिकायत करना
जाति को लेकर राजनीति
धर्म और जाति के आधार पर बंटना और बॉटना
हर दिन कोई न कोई झमेला
फिर असली आजादी कहॉ?
असली आजादी तो वह होगी जब पूर्ण समर्पण हो देश के प्रति न कि कोई मसला ढुढना
कभी असहिषणुता तो कभी आरक्षण 
तो कभी प्रांतीयता और भाषावाद
इनके ऊपर उठना और विकास की बात सोचना
यही गणतंत्र का असली मायने होगा .

Saturday, 23 January 2016

नेता जी सुभाष चंद्र बोस को शत शत नमन

आज बोस जी की जयंती है आज मोदी सरकार ने भी उनसे जुडी फाइलों को सार्वजनिक किया है
कम से कम उनकी मौत पर से पर्दा उठना ही चाहिए
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा  के नायक की मौत ऐसी गोपनीय नहीं होना चाहिए
सच सामने आना चाहिए
ऐसा नायक जो जर्मनी जाकर आजाद हिन्द फौज का निर्माण करता है और चलो दिल्ली का नारा देता है
हॉ लेकिन इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए
स्वतंत्रता के महानायक सुभाष बाबू जैसे लोग ही थे
बिना बलिदान के आजादी नहीं मिलती
आज भी उस समय के लोग जो पढे लिखे नहीं है
फिर भी कहते है कि नेताजी का अपहरण हुआ था
वे विमान दुर्घटना में नहीं मरे थे
क्यों उनकी मृत्यु को आज तक असमंजस में रखा गया था
कही नेताजी को सत्ता की लालच में बलि तो नहीं चढा दिया गया
ताइवान का विमान हादसा आज तक स्पष्ट नहीं हुआ
नेताजी की १९६४ तक जिंदा होने तक का अंदाज लगाया जाता है
नेताजी का ड्राइवर आज भी आजमगढ में जीवित है जिनका कहना कि उसने वह उनके साथ था
विमान हादसे में वे मरे नहीं थे.
कहीं उनके साथ कोई साजिश तो नहीं हुई थी
यह सब सामने आना चाहिए

ईश्वर ,अल्ला तेरो नाम सबको सम्मति दे भगवान

लार्ड ,ईश्वर, अल्ला  यह सब तो है तेरे नाम
क्रास ,स्वस्तिक ,चॉद यह है प्रतीक इनके
पर ईश्वर तो सबके दिलों में निवास करता है
ईश्वर तो घट घट वासी है
सबका मालिक तो एक ही है
हमने उन्हें मजहबों की दिवार में बॉट रखा है
तेरे ईश्वर से मेरा खुदा अच्छा
इसलिए कोई स्वस्तिक लगाता है तो कोई क्रास
संदेश तो सभी का एक ही
शॉति, अहिंसा और प्रेम
पर यह कहीं दिखाई नहीं देता
एक -दूसरे को श्रेष्ठ दिखाने की होड में शॉति अशॉति का रूप धारण कर लेती है
प्रेम तो कहीं गायब हो जाता है
उसका तो अता पता नहीं
बेहतर तो यह है कि हर धर्मावलंबी एक दूसरे का सम्मान करे पर अपना उन पर थोपे नहीं
हर व्यक्ति को इतनी आजादी तो होनी चाहिए
मजाक करते वक्त भी भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए
एक वाकया कि हमारे स्कूल में दो शिक्षक थे जो आपस में दोस्त भी थे
एक बार दोनों सीढी चढते चढते आपस में ही हाथापाई करने लगे तो बच्चों ने उन्हें छुडाया
बात यह थी कि एक जैन थे और दूसरे राजपूत
एक शाकाहारी दूसरा मॉसाहारी.
राजपूत सर हर रोज मॉसाहार की बात चटाखे लेकर सुनाते और जैन सर मॉसाहारियों की निंदा करते नहीं चूकते
आखिर बरसों की चली आ रही दोस्ती का यह हश्र कि दोनों एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन चुके हैं

Friday, 22 January 2016

दिव्यांग से ज्यादा अपंग है हाथ -पैरों वाले

बचपन में एक कहानी पढी थी एक व्यक्ति बहुत दुखी रहता था उसकी हमेशा ईश्वर से शिकायत रहती थी कि ईश्वर ने उसे कुछ नहीं दिया
एक दिन ईश्वर एक सामान्य आदमी का भेष धर कर आए और कहा कि तुम मुझे एक हाथ दे दो मैं तुम्हें एक लाख दूगा तो उसने कहा कि फिर मैं क्या करूगा
तो फिर बारी बारी से शरीर के हर अंग ऑख पैर इत्यादि मॉगने लगे उसने कहा कि उसके अंगों का मोल पैसे से नहीं लगाया जा सकता
तब जाकर उसे समझ में आया कि उसे इतना सही सलामत अनमोल शरीर मिला है तब मैं काम क्यों नहीं कर सकता
आद जब हम किसी दिव्यांग को देखते हैं जो कि हाथ पैरों में अपंगता होने के बावजूद , नेत्रहीन होने के बावजूद एक ठसक और स्वाभिमान से जाते हुए दिख जाएगे
इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग जिनके हाथ -पैर सही सलामत है जो भीख मॉगते और गिडगिडाते दिख जाएगे
भीख मॉगना इनका पेशा बन चुका है और न देने पर कभी -कभी कोसते हुए और बद्दुआ देने पर भी बाज नहीं आते
पिछले दिनों एक किन्नर पहली बार टेक्सी चालक बना
दाद देनी चाहिए ऐसे लोगों की
भीख मॉगने वाले सही सलामत व्यक्ति को सरकार किसी मेहनतकश कार्य में लगाए तो इनकी संख्या में भी कमी आएगी और लोगों को भी ऐसे लोगों को भीख देकर बढावा नहीं देना चाहिए
प्रधानमंत्री ने भी उनका सम्मान कर हौसला बढाया है ऐसे लोगों से हाथ पैरों वाले भी कुछ सबक ले

Thursday, 21 January 2016

कब तक जाति और धर्म की राजनीति होगी

आपसी लडाई झगडा या खेल या फिर कानून का उलंघन
हर जगह जाति और धर्म का रंग चढा दिखाई देता है
अगर लडाई दो पडोसी या दोस्तो में हो और भगवान न करे अगर वे दो अलग धर्मों या जातियों के हुए तो वह अग्नि का रूप धारण कर लेती है
दलित छात्र अगर आत्महत्या कर ले तो वह राजनीति और दूसरे वर्ग का हो तो उसका किसी को एहसास भी नहीं
मुस्लिम आंतकवादी को फॉसी हुई तो बवाल
वह नायक बन जाता है
गॉधी जी को गोली मारी गई तो कोई बवाल नहीं हुआ क्योंकि मारने वाले नाथूराम गोडसे हिन्दू थे
वही इंदिरा गॉधी की हत्या पर सिखो पर जुल्म ढाया गया और आग में झोका गया  क्योंकि मारनेवाले सिख धर्मावंलबी थे
सिक्खो की देशभक्ति पर संदेह किया गया .
कातिल तो कातिल होता है कोई धर्म और जाति तो उसे नहीं सिखाता
अगर अपराध होगा तो अपराधी को सजा तो मिलेगी
कानून और न्याय व्यवस्था जाति और धर्म तो नहीं देखता
अगर छात्र गलती करेंगे तो जो सजा का प्रावधान है वह तो उनके लिए भी होगा
नेता गण भी इसके लिए जिम्मेदार है
उन्हें इस दलगत और धर्म गत राजनीति से ऊपर उठना चाहिए

Wednesday, 20 January 2016

पाकिस्तान में आंतकी हमला

पाकिस्तान में युनवर्सिटी पर आंतकवादी हमला हुआ है
पहले बच्चो  पर स्कूल में हमला
आज युवाओं पर हमला
क्यों आनेवाला भविष्य को ही निशाना बनाया जा रहा है
क्योंकि आनेवाली नस्ले शायद रूढीवाद और धर्मांध नहीं होगी
शिक्षा का प्रभाव होगा
आनेवाली नसल मलाला जैसी होगी जो उनकी बातों में नहीं आनेवाली
बेकसूर बच्चों और युवाओ पर हमला और कत्लेआम निंदनीय है
सभी को इसकी निंदा करनी चाहिए
सोलह दिसम्बर की घटना को फिर दोहराया गया है
बच्चों को धर्म के नाम पर मौत की घाट सुला देना
क्या हाल हुआ होगा उनके माता पिता का
दहशतगर्दी का खात्मा करना ही चाहिए

वाह रेल सुविधा हो तो जापान जैसी

पिछले दिनों एक खबर छपी थी कि जापान में केवल एक यात्री को छोडने और लेने के लिए रेल जाती है
जापान की सरकार  उसे बंद करने वाली थी यात्रिओं के अभाव के कारण पर पता चला  एक लडकी उससे स्कूल आती और जाती है तो उन्होंने अपना फैसला बदल दिया जब तक कि वह स्नातक नहीं हो जाती
यहॉ तक कि रेल का समय भी उसके हिसाब से रख दिया गया है
इस् मार्च में उसकी पढाई पूरी हो जाएगी तो वह ट्रेन बंद कर दी जाएगी
मानना पडेगा अपने नागरिकों का इतना ख्याल रखना और शिक्षा को इतना महत्तव देना
हमारे यहॉ तो यह एक सपना जैसा ही लगता है
मोदी जी की बुलेट ट्रेन का सपना तो साकार हो लेकिन हर नागरिक को आवागमन की सुविधा कब मिलेगी
हमारे यहॉ रेलसफर कितनी बार जानलेवा सफर बन जाता है
अगर अपने नागरिकों का देश इतना ध्यान रखे तो वह भी देश के लिए कुछ भी कर सकता है हमारे यहॉ तो रेल में भेड बकरी की तरह सवारी की जाती है
यात्रा की योजना बनाते ही दिल कॉप जाता है
समस्या पैसे की नहीं रेल टिकट रिजर्वेशन की होती है
यहॉ कितनी जगह आज भी बच्चे नदी पार कर जाते हैं पाठशाला
कुछ  जगह अभी भी रेल सेवा से अछूते हैं
बुलेट ट्रेन तो बाद में यात्री समय से अपने गंतव्य पर पहुँच जाय तो भी बहुत है
रेल यात्रा को आसान ,आरामदायक और सुकुन देनेवाला बनाया जाना चाहिए

Tuesday, 19 January 2016

विचार तभी सार्थक होते हैं जब विचारों को साझा करने वाले हो

आज मेरे ब्लाग और पोस्ट को पढनेवालों और देखनेवालों की संख्या दस हजार एक हो गई है
दस हजार की संख्या पार करने पर मैं सभी को धन्यवाद देना चाहती हूँ 
आप लोगों के कारण ही मुझे लिखने की स्फुर्ति और उत्साह मिला
एक साल पहले तक मुझे टाइप करना भी नहीं आता था पर आज मैं स्वंय टाइप कर लिखती हुँ और अपने विचार को साझा करती हूँ
शुक्रिया दोस्तों

अगर जीवन एक फिल्म होती

अगर जीवन एक फिल्म होती
जब चाहे सी डी लगाकर देख लेती
ब्लेक और व्हाइट दृश्यों में रंग भर देती
जो दृश्य नहीं चाहिए कॉट छॉट देती
जैसा चाहती वैसी पटकथा लिखती
सब कुछ सुंदर और परिपूर्ण ,दुख तो होता ही नहीं
मनचाहा नायक होता ,मनचाहे सपने होते
एक बडा सा बंगला होता ,फूलों की क्यारियॉ होती
जहॉ मनचाहे सपने बुनती और आशाओं के झूले में झूलती ,मनभावन सपने को साकार करती
दुखी और पीडादायक लम्हों को भी आनंद दायक बना देती पर अफसोस जीवन फिल्म नहीं है
न उनकों खींचकर मनचाहा रूप देनेवाला कैमरा भी नहीं है
जीवन तो भूत ,वर्तमान और भविष्य का वह भँवर जाल है कि उससे निकलना भी मुश्किल
अतीत पीछा नहीं छोडता ,वर्तमान जीने नहीं देता और भविष्य सोच -सोचकर परेशान कर देता है
अंत में उस पर मृत्यु रुपी परदा पड जाता है
सब यही का यही धरा रह जाता है
रोते हुए आए थे पर जाएगे कैसे यह तो परिस्थितियॉ तय करती है हम नहीं
हम तो ऊपर वाले के हाथ की कठपुतली है जो उसका दिया हुआ रोल निभाते हैं

Monday, 18 January 2016

कार जीवन नहीं है सॉस है तो जीवन है

हर किसी का सपना  एक घर और कार हो अपना
घर लेना तो लगता है मुश्किल पर कार लेना मुमकिन
एक समय था जब आदमी रिटायर होते होते घर तो बना लेता था
पर कार नहीं आज हालात अलग है नौकरी लगते ही कार आ जाती है
पहले इक्के दुक्के धनवानों के पास कार होती थी आज हर घर में कार और एक नहीं प्रति व्यक्ति.
इतनी कारें सडक पर कि कार की रफ्तार कम और प्रदूषण की ज्यादा
कार दौडती नहीं रेंगती नजर आती है
अगर ऐसे ही चलता रहा तो हमारे सॉसों की रफ्तार भी कम हो जाएगी
जब हम ही नहीं रहेंगे तो कार रहकर क्या करेंगी
हमारे बिना तो कार भी बेकार
अब शायद समय आ गया है कि चार पहिए की सवारी छोड दूसरे साधनों का इस्तेमाल करना होगा
सॉस चलती रहेतो यह करना ही पडेगा .
कार को सपना नहीं जरूरत समझना है
वातावरण को दमघोंटू होने से बचाना है
प्राणवायु को विलासिता की भेंट नहीं चढाना है

Wednesday, 13 January 2016

कैसी है यह दुनियॉ जिसके हर खेल निराले

यह दुनियॉ रंग बिरंगी भैया
हर किसी की भँवर में फँसी है नैया
परेशानी तो पीछा ही नहीं छोडती यहॉ
कभी चलते तूफान तो कभी चलती ऑधियॉ
थपेडे सहते सहते बीत जाती है जिंदगानियॉ
कभी आते हैं दुख तो कभी खुशियॉ
पर बदलती नहीं है दिनचर्या
जैसे ही लगता है अब ठीक है आ जाती है कठिनाइयॉ
कोई खाकर परेशान तो कोई बिना खाए परेशान
कोई गरिबी से परेशान तो कोई अमीरी से
किसी को सोने के लिए वक्त नहीं
कोई सोने की कोशिश में लेता दवाईयॉ
कोई बिना भोजन के दुबला
कोई दुबला होने के लिए डाइटिंग पर
शिकायत ही शिकायत है फिर भी जीए जा रहे हैं
क्योंकि कुछ बात तो तुझमें है जिंदगी कि
हम मरना भी तो नहीं चाहते
तुझे बचाने के लिए लेते रहते हैं दवाईयॉ
करते रहते हैं व्यायाम
हँसने के लिए ज्वाइन करते हैं लॉफिंग क्लब
हर तरह की कसरत और कवायद करते हैं
यह सब कुछ केवल तुम्हारे लिए जिंदगी
क्योंकि हम ढुढते रहते हैं तुझमें सारी खुशियॉ

Thursday, 7 January 2016

मैं कौन हूूँ - क्या है मेरी पहचान

आज सुबह कार्यस्थल पर जाने के लिए टेक्सी ली
गंतव्य पर पहुँचने पर टेक्सी ड्राइवर को पूछा कि कितने पैसे हुए भैया
वह भडक कर बोला -मैं भैया नहीं हूँ
मैं आश्चर्य से देखती रह गयी कि मैंने कोई ऐसा संबोधन तो नहीं किया था कि गुस्सा आ जाए
बात यह है कि हर प्रांत के व्यकिओ के साथ कुछ न कुछ ऐसा जोड दिया है
या तो उनका मजाक बने या हीनभावना से देखा जाय
सरदारों पर तो जोक्स प्रसिद्ध ही है
राजस्थानी मारवाडी के साथ कंजूस
महाराष्ट्रीय के लिए घाटी
दक्षिण भारतीयों के लिए लुंगी से संबंधित
सिंधियों के लिए या फिर सिक्कीम ,मणिपाल के लोगों के लिए चिंकी
हमारे यहॉ एक समारोह में एक स्वतंत्रता सेनानी आए थे भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि जब राजेन्द्र प्रसाद पहली बार मुंबई एक सम्मेलन में भाग लेने आए थे तो हम यह सोचने लगे कि यह भैया क्या बोलेगा पर जब उनकी बातें सुनी तो दंग रह गए
अब यह प्रशंसा थी या क्या था समझ नहीं आया
इन्हीं व्यक्तिओं में बाबू राजेन्द्र प्रसाद ,लोकमान्य तिलक,डॉ मनमोहन सिंह, डॉ ऱाधाकृष्णन ,लालकृष्ण अडवानी और अरविंद केजरीवाल जैसे लोग है
मजाक ,मजाक तक और शब्द तब तक ही अच्छे लगते हैं जब तक किसी को ठेस न पहुँचाए
कितनी तकलीफ होती होगी कि अपने ही देश में उनके अलग नाक नक्श के कारण चीनी ,जापानी या चिंकी कहा जाय
भैया जैसे पवित्र संबोधन को किसी प्रांत के लोगों को नीची दृष्टि से देखने के लिए किया जाय
भारत के सरताज सरदारों को मजाक का पात्र माना जाय
यहॉ तक कि बहन जी शब्द को भी आजकल पुराने जमाने से जोड दिया गया है
हँसना अच्छी बात है पर किसी को गिराकर और नीचा दिखाकर नहीं
शब्दों में मायने बदलने की बडी ताकत होती है
शब्द चोट भी पहुँचा सकते है और बडे मरहम का काम भी कर सकते हैं.
शब्द को किसी के व्यक्तित्व से जोडकर देखना?
रही बात तो यह अनपढ लोग नहीं बल्कि पढे-लिखे भी इस्तेमाल करते है
अब तो बदलाव आना चाहिए

Wednesday, 6 January 2016

स्वच्छता - कब हम बदलेंगे


प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा और आंकाक्षा भारत को स्वच्छ देखने की
जब वह विदेश में सफाई देखते थे उनका भी मन भारत को वैसा ही देखने का मन करता था
देश की बागडोर हाथ में आने पर पहला प्रयास उन्होंने यही किया स्वच्छता अभियान चलाने का
पर हमें तो उसकी आदत हो गई है
जगह -जगह थूकने की कचरा फेकने की हमारी आदतों में शुमार है
उसमें लोगों को कुछ भी गलत नहीं लगता
टोकने पर बोलेगे कि आपसे क्या मतलब या
केवल हम नहीं थुकेगे तो क्या थुकना बंद हो जाएगा
सही भी नाक साफ कर लेना
रही बात शौचालय की तो वह तो कही भी बन जाता है
वैसे भी शौचालयों की इतनी बुरी अवस्था है कि बाहर करना ही वह ठीक समझता है
गंदगी का साम्राज्य रहता है वहॉ
फिर वह चाहे कोई भी जगह हो
और करने वाले ही हम ही होते हैं
प्रधानमंत्री को तो हर गॉव- गॉव ,शहर -शहर में पहले लोगों को प्रशिक्षित करने वालों को नियुक्त करना चाहिए
पाठशालाओं में भी प्राथमिक शिक्षा के साथ इसकी भी शिक्षा देनी चाहिए
हमारा कोई नागरिक विदेश से लौटता है तो वह अपने ही देश को देखकर नाक भौं सिकेडता है
कब हमारा देश स्वच्छता में भी महान बनेगा

हग शख्श परेशां है जहॉ में

एक के पास दोमंजिला मकान तो दूसरा बेघर
एक के पास छप्पन भोग तो दूसरे को पेट भर रोटी भी दुर्लभ
एक बिजली -पानी का बिल भरने को लाचार
तो दूसरा टैक्स दे -देकर परेशान
एक लोकल ट्रेन और बस के धक्के खाकर परेशान
तो दूसरा गाडियॉ कहॉ रखे उससे परेशान
एक दूसरों की बेईमानी से परेशान
तो दूसरा सच्चाई से परेशान
एक की मुसीबत कि पैसा कहॉ रखे
तो दूसरा शून्य बैंलेस होने से परेशान
एक पडोसी की खुशियों से परेशान
तो दूसरा ऐसे पडोसी से परेशान
मतलब यह कि इस जग में हर कोई परेशान
हॉ परेशानियों में जरूर जमीन - आसमान का अंतर है
जब तक रहता है किसी न किसी कारण से परेशान ही रहता है
परेशानियों का कोई अंत नहीं
सही है यह पंक्तियॉ
यहॉ मुकम्मल जहॉ नही मिलता
किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता

Saturday, 2 January 2016

२०१६ में संसद में काम होगा या बदजुबानी

नव वर्ष शुरू हो गया है इस नये साल में संसद में काम होगा या फिर यह साल भी वाद विवाद में व्यतीत होगा?
जीएसटी  बिल अटका रह गया
बीता साल तो नेशनल हेराल्ड ,मंदिर में प्रवेश फिर और किसी बात पर
किसने किसी को कुछ कह दिया या भडंकाऊ भाषण
या फिर राहुल गॉधी की छुट्टी का मामला या अखलाक का केस
सारा समय इसी में चला गया
विपक्ष नम्र होना नही चाहता और सत्ता पक्ष अपनी एरोगेन्सी नहीं छोडना चाहता
उनके नेता विपक्ष के नेता को पप्पु तो अपरिपक्व या फिर विदेशी मुल को लेकर या फिर शैतान की उपाधि देकर बयानबाजी करते रहे हैं
मुख्य मुद्दा बाजू में रखकर व्यक्तिगत टिप्पणी करना जारी रहा
अब सत्ता पक्ष को सोचना चाहिए कि वे विपक्ष में नहीं है दूसरे के कार्यों पर दोषारोपण करना शोभा नहीं देता
उनको देश ने मुखिया बनाया है
मुखिया को तो सबको साथ लेकर चलना पडता है और झुकना भी पडता है तभी परिवार चलता है
देश का भी यही हाल है
प्रधानमंत्री जी को भाषण देते समय सोचना चाहिए कि यह भारत का प्रधानमंत्री बोल रहा है
वे या तो चुप रहते हैं या फिर चुनाव  के वक्त अक्रामक भाषा का प्रयोग करते हैं
उनके कुछ नेता और प्रवक्ता इसमें माहिर है
सत्ता पक्ष बोलता रहे और विपक्ष से सहयोग की अपेक्षा करें यह कैसे संभव है
मोदी जी जितने प्रेम से नवाज शरीफ या दूसरे नेताओ से गले मिलते हैं.
कभी मनमोहन सिंह या दूसरों से मिले.
बॉडी लेग्वेंज बताती है कि पक्ष और विपक्ष नहीं एक दूसरे के दुश्मन हैं.
हमेशा एक दुसरे पर तोहमत लगाना
क्या इसी के लिए जनता ने संसद में चुन कर भेजा है
आशा है नेताओ के व्यक्ति गत मसलों को छोड कोई रचनात्मक और जनता की भलाई के लिए कार्य करें
प्रधानमंत्री को बडे भाई की भुमिका निभाना है
न कि शत्रु की
आपको सुनना भी पडेगा चाहे वह राहुल हो ,लालुजी हो या केजरीवाल हो
क्योंकि सबको साथ लेकर चलना आपकी जिम्मेदारी है

नशा ,नशा होता है और कोई भी नशा जानलेवा ही होता है

हमारे पडोस में एक लडकी किराये पर रहने आई
वह मकान मालिक की रिश्तेदार थी
उनके लडके का आना जाना होने लगा
दोनों में नजदीकियॉ बढ गई और बात शादी तक पहुँच गई
जब वह आई थी तो कोई नशा नहीं करती थी पर अब एक हाथ में शराब और दूसरे हाथ में सिगरेट
अब उसको लत किसने लगाया उसके वर्तमान पति ने
अभी तो नया नया है ठीक है पर कल यही वाद विवाद का कारण बनेगा
आजकल तो पीने पिलाने का फैशन चल पडा है
और यह केवल शहरी क्षेत्रों में नहीं गॉव देहात में तो और पहले से था
औरते हुक्की ,बीडी इत्यादि का धडल्ले से इस्तेमाल करती थी
लडका हाईस्कूल पास हो जाता है तो वह तंबाखू खैनी खाना शुरू कर देता है
कुछ जगहों पर औरते तंबाकू भुन कर उसी को दंतमंजन के रूप में उपयोग करती है
पहले हुक्का पानी को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोडा जाता था
तो इसकी जडे हमारे यहॉ मजबूती से जमी हुई है
इसके लिए नई पीढी को आगे आना पडेगा न कि खुद उसी में लिप्त होकर
तंबाखू मानसिकता से जुडी हुई है
उसका उपयोग कोई पान के रूप में तो कोई खैनी के रूप में तो कोई पाचन से जोडकर या समय बिताने के साधन के रूप में या फिर आधुनिकता से जोडकर
इस विष को किसी भी प्रकार नष्ट करने की जरूरत है
जितना ज्यादा हो सके लोगों में जाकरूकता फैलाकर
नहीं तो यह निकोटिन नामक जहर समाज को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोडेगा