Friday, 28 July 2017

जीवन नहीं मरा करता है

🌷Please READ THIS AWESOME POEM.. JEEVAN NAHI MARA KARTA HAI                                   🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों!
मोती व्यर्थ लुटाने वालों!
कुछ सपनों के   मर जाने से
जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है? नयन सेज पर,
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों,
जागे कच्ची नींद जवानी,
गीली उमर बनाने वालों!
डूबे बिना नहाने वालों!
कुछ पानी के बह जाने से
सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गई तो क्या है,
खुद ही हल हो गई समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो,
समझो पूरी हुई तपस्या,
रूठे दिवस मनाने वालों!
फटी क़मीज़ सिलाने वालों!
कुछ दीपों के बुझ जाने से
आँगन नहीं मरा करता है।

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर,
केवल जिल्द बदलती पोथी।
जैसे रात उतार चाँदनी,
पहने सुबह धूप की धोती,
वस्त्र बदलकर आने वालों!
चाल बदलकर जाने वालों!
चंद खिलौनों के खोने से
बचपन नहीं मरा करता है।

लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार कश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों!
लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश
पर उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गंध फूल की,
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द हुई न धूल की,
नफ़रत गले लगाने वालों!
सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से
दर्पन नहीं मरा करता है।।

कुछ स्वप्नों के मर जाने से
जीवन नहीं मरा करता है....
.
💐💐💐💐💐 Copy pest

Saturday, 22 July 2017

आपकी कृपा बरसती रहे

भीगा- भीगा सा शमा
भीगा- भीगा सा मौसम
भीगा- भीगा सा मन
यह बरसात तो पहले भी थी
पर तुम्हारा साथ न था
बरखा की बूंदे नहीं ,खुशियों की बरसात है
तुम्हारा साथ और बरखा बहार
यह मिलन रहे सदाबहार
याद आती है वह भी शमा.
जब मैं यहॉ तुम वहॉ
विरह से दिन- रात थे गुलजार
पर आज वह खुशी से गुलजार
आसमां से बारीश की फुहार
ईश्वर की कृपा अपरंपार
बरसती रहे हम पर परिवार पर

कुर्सी भी कुछ बोलती है

यह निर्जिव कुर्सी पर सच में क्या निर्जिव
इसमें कोई भावना नहीं.
पर वास्तव में ऐसा नहीं है
जब किसी को बैठाया जाता है
उसका स्वागत सत्कार होता है.
तब कुर्सी की भी शान बढ जाती है.
खुशी के साथ गरूर भी हो जाता है.
इतराती और शानदार भी हो जाती है
जब किसी को उतारा जाता है तो गमगीन भी हो जाती
अपनापन का नाता जो बन जाता है
हँसी - खुशी , सुख- दुख बॉटा है साथ में
इसी पर बैठकर आदेश दिया , हुक्म किया
पद की रौबता दिखाई
कभी दया और अपनापन भी दिखाया
कभी गुस्से से बरसे भी
कभी साथियों के साथ हंसी - ठिठोली भी की
सब इसे पाना चाहते है
हसरत होती है बैठने की
पर यह दुख में तब सिसकती भी है
जब इस पर बैठने के लिए , पाने के लिए
गलत मार्ग चुने
अपनों को भूल जाए
इसी तख्तोताज के लिए क्या - क्या न हुआ
इसका इतिहास गवाह है
इसे निर्जिव मत समझना
हर कुर्सी भी कुछ बोलती है

Wednesday, 19 July 2017

अगर तुम न होते

अगर तुम न होते तो किससे बतियाती
किससे लाड लडाती
किससे सुख- दुख बॉटती
किसे जी भर गुस्सा करती
किसकी बाट जोहती
किस पर हक जताती
किससे रूठती
किस पर रौब झाडती
किसके मन की रानी बनती..

तुम हो तो सब है
नौकरानी नहीं तुम्हारी रानी हूँ
तुमको देख चेहरे पर मुस्कान आ जाती
तुम्हारी उपस्थिति सुरक्षा का एहसास दिलाती
तुम्हारा साथ पाकर अपने को सौभाग्य शाली मानती
तुम्हारा - हमारा तो जन्मों का साथ
यह मालिक और दासी का रिश्ता नहीं
पति - पत्नी का है
एक के बिना दूसरा अधूरा है

Tuesday, 18 July 2017

दिल और यादों में रहेगे हरदम

जब तुम न होगे तब भी तुम्हें लोग याद करेंगे
तुम्हारी इसी अदा की तारीफ करेंगे
जब कभी तन्हाइयॉ होगी
तुम्हारी याद में होठों पर हँसी की फुहारे आ जाएगी
जब कभी आपस में मिल बैठेगे
तब आपकी  कमी तो अवश्य महसूस होगी
आपकी याद में शेरों - शायरी की महफिले भी जमेगी.
स्वयं भी हंसेगे लोगों को भी हंसाएगे
वाह- वाह ,शुभान अल्लाह की गूंज भी होगी
रंगीन शमा तो होगा पर आप बिना सब खालीपन होगा
वहीं समारंभ होगे ,वहीं प्रतियोगिताएं होगी
सब कुछ वही होगा पर तुम न होगे
वह रौनक वह जलवा न होगा
संगत नहीं तो रंगत कैसे होगी
आपकी कुर्सी भी खाली होगी पर फिर भी आपका अहसास तो होगा ही
पर जाना तो होगा ही
रूकना तो संभव नहीं
पर यादे तो साथ रहेगी हमारे साथ - तुम्हारे साथ
वक्त - वक्त पर तुम याद आओगे
हम तो तुम्हें याद करेंगे पर तुम भी हमें कहॉ भूल पाओगे
हमारी हँसी तुम्हारे कानों मे खनकती रहेगी
न भूलोगे तुम न भूलेगे हम
सामने न हो हम भले
दिल और यादों में रहेंगे हरदम

हाय रे - तेरा झुमका रे

चेहरे की शान बढाता
तुम्हारे अंदाज को बया करता
जब बोलती हो तुम
झूम- झूमकर कहता है वह भी कुछ
झिलमिल- झिलमिल कर रहा
तुम्हारी खूबसूरती में चार चॉद लगा रहा
तुम न बोलो तब भी यह बोलता है
हिल- हिलकर यौवन को सलाम करता है
उसमें जडे मोती - मनके
तुमको भी कीमती बना जाते
सौंदर्य को और निखारता
झूमता और इतराता
तुम्हारा साथ पाकर यह भी अपने को धन्य समझता
नख से शिख तक सबको संवार देता
यह कानों का झुमका
देखने वालों के मुख से निकलता
हाय रे- तेरा झुमका रे

जिंदगी को स्वयं भी जीना सीखो

पढोगे तो रो पड़ोगे :

जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो, दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।
फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी।
और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए।
और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार ।
समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।
इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला।
बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी
इतने में मैं 35 का हो गया। घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।
इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब 10वि आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए। बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया।
एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"
उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि "तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे बातो की सूझ रही है ।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।
तो फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।
बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में शुन्य बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेश।
उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे चश्मा भी लग गया। मैं खुद बुढा हो गया। वो भी उमरदराज लगने लगी।
दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।
अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।
एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक के फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था। जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा।
उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना। और आप भी वही रह लेना। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।
मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं "
वो तुरंत बोली " अभी आई"।
मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया। हमेशा के लिए !!
उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी "बोलो क्या बोल रहे थे?"
लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।
क्षण भर को वो शून्य हो गयी।
" क्या करू ? "
उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। इश्वर को प्रणाम किया। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।
मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली
"चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे ? क्या बातें करनी हैं तुम्हे ?" बोलो !!
ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......
वो एकटक मुझे देखती रही। आँखों से अश्रु धारा बह निकली। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।
क्या ये ही जिन्दगी है ? नहीं ??
सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो । जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।
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Monday, 17 July 2017

वर्षा रानी आई है , साथ में खुशियॉ लाई है

उमड - घुमड कर बादल गरजे
काली - काली घनघोर घटा छाई
आसमां भी हुआ केसरिया
इंद्रधनुष की छटा बिखरी
तब ही समझो
वर्षा रानी आई है साथ में खुशियॉ लाई है
पपीहे की प्यास बुझाने
पेडों को नहलाने
फसलों को लहलहाने
किसानों का गम दूर करने
बच्चों के साथ मस्तियॉ करने
लताओं के साथ झूमने.
मेढक की टर्र - टर्र सुनवाने
मोर के साथ नृत्य करने
धरती मॉ को तृप्त करने
कुएं , तालाब , नदी को भरने
वर्षा रानी आई है साथ में खुशियॉ लाई है
मौसम भी हुआ खुशगंवार
मनमयूर भी नाच रहा
भीगा तन भीगा मन
अंगडाइयॉ ले रहा यौवन
सुहावना हुआ रात - दिन
वर्षा रानी आई है साथ में खुशियॉ लाई है
स्वागत में सब ऑखें बिछाए
ताक रहे हैं तुम्हें आस से
खुशियों की फुहार सब पर उडाती
वर्षा रानी आई है साथ में खुशियॉ लाई है.

Sunday, 16 July 2017

कन्यादान

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झुमरी ने व्रत रखा है सोमवारी का । बड़की काकी बताए रही सोलह सोमवारी का व्रत रखने से दूल्हा बढ़िया मिलता है ।

दोपहर के खाने पर जब बाउजी के थाली में झुमरी नहीं बैठी तो उन्होंने कारण पूछा । उसने खुश होकर कारण बताया तो बापू उदास हो गया बढ़िया दूल्हा होगा तो बढ़िया दहेज भी लगेगा ।

बापू के दुख से वो दुखी हो गई "तो फिर क्या फायदा तोड़ दूं व्रत ? "

बापू मुस्कुराया " व्रत क्यों तोड़ेगी व्रत तो महादेव का है न ,दूल्हे का थोड़े  ,ऐसा कर तू नहाधोकर जा पूजा करले और पारण कर ले । "

झुमरी नहाकर भींगे कपड़ों में ही अंजुरी भर जामुन लेकर मंदिर पहुंच गई । पुजारी देखकर मुस्कुराये "अरे छोटी भक्तिन तू सबसे पहले आ गई । "

बातूनी झुमरी ने जल्दी आने की पूरी कहानी पुजारी को सुनाकर पूछा "  महादेव तो खूब जामुन खाते होंगे है न तभी तो उनका कंठ तक नीला हो गया है । मैं तो थोड़ा खाती हूं तब भी जीभ नीली हो जाती है । "

नीलकंठ की कहानी सुनकर पुजारी मुस्कुरा उठे । उसकी अंजुरी से जामुन लेकर उसकी हथेली आरती थाल के सिक्कों से भर दी और सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया "तुम्हारी मनोकामना पूरी हो । "

झुमरी ने फौरन सवाल किया " लेकिन बापू तो कह रहा था उसमें बहुत खर्चा है ।"

पुजारी ने आशाभरी नजरों से महादेव को देखा और फिर झुमरी का चेहरा हाथों में भरकर बोले " ऐसी ही एक अंजुरी जामुन मुझे लाकर देगी तो मैं महादेव से कहूंगा तेरे बापू की शंका का भी निवारण करें ।"

झुमरी सिक्कों से भरी हथेली संभालती डोलती हुई घर लौट गई । पुजारी ने मंदिर के दान पात्र को हटाकर नया दानपत्र रखवाया है जिसपर लिखा है कन्यादान ।

कुछ टेढापन भी जरूरी है यारों

जिंदगी मिली है जीने के लिए
सीधा - सादा और उच्च विचार
पर लोग तो इस तरह जीने ही नहीं देते
सीधा पेड ही हमेशा पहले काटा जाता है
ज्यादा मेहनत नहीं और फायदा भी
संसार में सीधेपन का फायदा उठाने वाले
हर जगह मिल जाएगे
इसलिए ज्यादा सीधा बनना भी ठीक नहीं
भगवान शंकर इसलिए भोलेनाथ है कि
उनके पास तीसरा नेत्र है
जो भस्म करने की भी शक्ति रखता है
विशाल समुद्र अगर खारा न होता तो
लोग कब का उसे पी जाते
अगर सांप जहरीला न होता
तो उसको खिलौना बना लेते
अगर शेर खूंखार न होता तो
वह जंगल का राजा नहीं
घर के खूंटे से बंधा होता
सीधा रहना है पर इतना भी नहीं
कि लोग उसका नाजायज फायदा उठाए
तंग करें ,और व्यंग्य कसे
पहले शक्तिशाली बने , फिर सीधा बने
वरना यह दुनिया जीने नहीं देगी
क्षमा भी उसी को शोभा देती है
जिसके पास शक्ति हो
दिनकर जी की पंक्तियॉ
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो

उसको नहीं जो विनित ,विषहीन हो

Saturday, 15 July 2017

गुलजार साहब की सुंदर कविता

जिन्दगी की दौड़ में,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया...।

हम सीख न पाये 'फरेब'
और दिल बच्चा ही रह गया...।

बचपन में जहां चाहा हँस लेते थे,
जहां चाहा रो लेते थे...।

पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई..।

हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से...
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में ..।

चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं...
तुम हमें ढुंढो...हम तुम्हे ढुंढते हैं .....!!

बाग का फूल

बगिया में खिला एक गुलाब का फूल
सुंदर ,खूबसूरत , चटकीला
ओस की बूंद उस पर झिलमिला रही
सूर्य अपनी रोशनी दे उसे सवार रहा
हवा हिचकोले दे दुलार रही
तितली उस पर बैठ डोल रही
भंवरे चारो ओर मंडरा रहे
रंगत है उसकी शानदार
आने - जाने वाले सब बडी हसरत से निहारते
हर किसी का मन मचलता उसे तोडने को
बच्चे लपकते उसकी ओर
कोई प्रेमिका के बालों में लगाने के लिए
कोई ईश्वर के चरणों में चढाने को
पर बगिया का माली है उसकी रक्षा को तैयार
फूल खिला है उसे खिलने तो दो
दो - तीन दिन की जिंदगी है
जी लेने दो ,मुस्करा लेने दो
वह तो खिलकर खुशियॉ ही दे रहा है
उसकी भी तो अपनी जिंदगी है
उसे जी भर कर जी लेने दो

Thursday, 13 July 2017

भाषा नहीं भाव हो

भाषा नहीं भाव होना चाहिए
मन की भावनाओं को समझना है
मन अगर भावों से भरा हो
वहॉ बिना बोले ही काम चल जाएगा
मूक पर प्रेम की भाषा तो पशु भी समझ जाता है
भाषारूपी विवाद में प्रेम बाजी मार ले जाता है
बचपन में बच्चा भाषा नहीं
प्यार की बोली और स्पर्श पहचानता है
प्रान्त और देश की क्या बिसात??
यह तो स्वयं का बुना मकडजाल है
जिसमें व्यक्ति फंस गया है
एक ही भाषा बोलने वाले आपस में मित्र हो
यह भी जरूरी नहीं
चाहे कोई भी रिश्ता हो निभाना आना चाहिए
पति- पत्नी , पडोसी या फिर सहयात्री
भाषा दूर करती है
भावना पास लाती है
भाषा का महत्तव तो है , उससे तो इन्कार नहीं
पर इतना तवज्जों भी न दिया जाय कि आपसी मतभेद का कारण बने
पर परिस्थिति विपरीत है
भाषा के नाम पर अलगाव हो रहे हैं
दंगे - फसाद हो रहे हैं
भाषा ईश्वर की सबसे बडी देन मनुष्य को है
लिखने ,सोचने- विचारने ,इतिहास को जानने
संस्कृतियों और विरासत का आदान- प्रदान
सब तो यही करती है
भाषा का काम तो जोडना है तोडना नहीं

बच्चे तो आखिर बच्चे हैं

पढाते समय दिखता है बच्चों का भोला चेहरा
कुछ के चेहरे पर शैतानियॉ ,कुछ कल्पना में खोए
कुछ उत्सुकता से सुनते , कुछ ऊबते हुए
कुछ उबासी लेते ,कुछ हलचल करते
कभी डाट तो कभी देख कर अंजान
अपना बचपन याद आ जाता है
मन ही मन चेहरे पर मुस्कराहट दस्तक दे जाती है
परीक्षा के समय सुपरविजन करते समय
बच्चों के चेहरे पर चिंता , हडबडाहट ,बैचेनी
कुछ तेज तो कुछ धीमे ,कुछ इधर- उधर ताकते हुए
प्यार उमड पडता है
अपने बच्चों का बचपन याद आ जाता है
उन्होंने भी इसी तरह यह पडाव पार किया होगा
परीक्षा का पेपर जॉचते समय
कुछ का बेहतरीन , कुछ का सामान्य
कुछ का बेतरतीब , कुछ का बेढंगा
कुछ का बिना लिखे ,केवल प्रश्न उतारा हुआ
कुछ गलतियों से भरा , कुछ अस्पष्ट
सबको समझने की कोशिश करती
आखिर बच्चे हैं , सीख रहे हैं
धीरे - धीरे सब आ जाएगा
हदय में दया उमड पडती है
सब तो एक समान नहीं हो सकते
चिढकर और क्रोधित हो क्या होगा??
ये छोटे- छोटे नौनिहाल अपने सामर्थ्य अनुसार प्रयत्नरत है
सीखते , सीखते ही सींखेगे
बच्चे तो आखिर बच्चे ही होते हैं।

Monday, 10 July 2017

हर फूल कुछ कहता है

फूलों से भी तो कुछ सीखिए
गुलाब मुस्कराकर कहता है
हर परिस्थिति में हँसना है
चाहे कांटों पर ही क्यों न है

रातरानी कहती है अंधेरे से घबराना क्यों??
अंधेरे में भी खिलना है

बकुली कहती है सांवला रंग से कोई फर्क नहीं पडता
अपने सुगंध रूपी गुण से दिल को जीतना है

सदाफूली कहती है
रूठने से काम नहीं चलता
हँसते- हँसते दूसरों को भी हँसाना है
मोगरा कहता है स्वयं की बडाई नहीं करना  बल्कि
सद्गुणों की सुगंध तो मीलों से ही आ जाती है
कमल कहता है कि कीचड में भी खिला जा सकता है
परिस्थितियों पर मात देना चाहिए
सूर्यमुखी कहता है उगते हुए सूर्य की वंदना करना है
जीवन को प्रकाश की ओर मोडना है

जो मिला है ईश्वर की कृपा से , वह बहुत है

अगर आप के फ्रीज में खाना है
तन पर कपडा है
सर पर छत है
सोने की जगह है
तो आप ७५% लोगों से ऊपर अमीरी में शुमार है संसार में

अगर आपके जेब में बटुआ है
कुछ पैसे हैं
आप कहीं भी आ- जा सकते हैं
तो आपका शुमार १८% अमीरों में होगा
अगर आपका स्वास्थ्य अच्छा है
जीवन मिला है
तो आप उन मीलियन लोगों से ज्यादा सौभाग्यशाली है
जो इस समय मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं
अगर आप इस संदेश को पढ पा रहे है ,समझ पा रहे है तो
आप संसार के उन तीन बीलियन लोगों से ज्यादा सौभाग्यशाली है
जो पढ और समझ नहीं पाते मानसिक बीमारी के कारण

जीवन में दुख और पीडा के लिए शिकायत करने की अपेक्षा हजारों ऐसे कारण है
जिसके लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करना है
खुश रहे , मस्त रहे

Sunday, 9 July 2017

सुख- दुख को साझा करता कुऑ

लोगों की प्यास बुझाता कुऑ
सुख- दुख बॉटता कुऑ़
पनिहारिने पानी भरती
घूंघट की ओट से बतियाती
घर की बातें , परिवार की बाते
सास- बहू की बातें , पति की बाते
मायके - ससुराल की बाते
सखी - सहेलियों का मिलना
हँसी - ठिठोली करना
बच्चों को गोद में ले दुलारना
नौजवानों का स्नान करना
हँसना - खिलखिलाना
गाय- बैलों को पानी पिलाना
बूढों का झुंड बनाकर बैठना
राहगिरों को रास्ता बताना
पानी पिलाना
धर्मादा कार्य करना हो तो कुऑ बनवाना
खेतों की क्यारियों को पानी से सींचना
पुरा गॉव का मिलन कुएं की मुंडेर पर किसी न किसी रूप में होना
रहट की आवाजें और बांस की फल्लियां डाला हुआ
कुऑ
अब कम ही नजर अा रहा है
अब तो नहर है ,हैंडपंप है ,आधुनिक सुविधाएं
कुछ पाटे जा चुके है ,कुछ पाटने की कगार पर
हमारी संस्कृति का अमूल्य हिस्सा
न जाने कितने किस्सा- कहावियों का गवाह
आज लुप्त हो रहा है
अब शहर में टेंकर तो गॉव में नहर
पानी न मिलने पर टैंकर
जिसके आते ही लोगों में भाग- दौड
पानी के लिए मची अफरा तफरी
मार- पीट तक की नौबत
कभी पानी पिलाना शबाब का काम समझा जाता था
आज व्यापार बन गया है
पानी अब बोतल में मिल रहा है
पैसे में मिल रहा है
अब कोई कुऑ नहीं बनवा रहा है
बोरवेल गडवा रहा है
कुऑ चुपचाप अपने को खत्म होते देख रहा है
हॉ ,लेकिन अब भी किसी जरूरतमंद की जरूरत करने को तैयार है
अब भी जमीन खोदने पर पानी देने को मना नहीं कर रहा
पर लोग भूल रहे है
जिसने सदियों से हमारे घर के दरवाजे पर खडे हो हमारी प्यास बुझाई
हमारे खेतों की सिंचाई की
उसका असतित्व भी हम ही खत्म कर रहे

गुरू हो गुरूर नहीं

जीवन ज्ञान बिना अधूरा है
बिना गुरू ज्ञान कहॉ
ज्ञान ही आत्मा को परमात्मा से मिलन कराती है
सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाती है
जीवन के सही मायने समझाती है
जीवन जीना सिखाती है
हम पल- पल सीखते हैं
कुछ अनुभव सिखाता है कुछ विद्यालय
जन्म लेते ही सीखना शुऱु हो जाता है
रेंगने ,बैठने और चलने से शुरूवात
गिरते हैं ,उठते हैं ,ठोकर खाते है
असफल होते हैं
जीवन ही अपने - आप में सबसे बडी पाठशाला है
बचपन ,यौवन ,बुढापे से लेकर मृत्यु पर्यंत
यह अनवरत सिखाती रहती है
न जाने कितने गुरूओं के माध्यम से
मॉ से लेकर प्रकृति का हर कण- कण
हॉ,सीखना हमें है पूर्ण समर्पण भाव से
जिसने समझ लिया कि वह परिपूर्ण हो गया
विकासगति वहीं रूक गई
आजीवन बालसुलभ उत्सुकता के साथ सीखना है
गुरू को समझना है ,उनका सम्मान करना है
गुरूता को नमन और गुरूर का त्याग
यही व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य
जीवन को सार्थक बनाना है तो सीखना भी है
अमल भी करना है
हर उस गुरु का शुक्रिया अदा करना है
जिसने जीवन को जीवन बनाया
अच्छे- बुरे का भेद समझाया
असफलता को सफलता में बदलने का गुर सिखाया
पशु से मानव बनाया
मानवता और इंसानियत का पाठ पढाया
स्वावलंबी और आत्मसम्मान से जीना सिखाया
      गुरू बिना ज्ञान नहीं
      ज्ञान बिना आत्मा नहीं

Saturday, 8 July 2017

न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान ,सब है आम इंसान

एक आम आदमी सुबह जागने के बाद सबसे पहले टॉयलेट जाता है,
बाहर आ कर साबुन से हाथ धोता है,

दाँत ब्रश करता है,

नहाता है,

कपड़े पहनकर तैयार होता है, अखबार पढता है,

नाश्ता करता है,

घर से काम के लिए निकल जाता है,

बाहर निकल कर रिक्शा करता है, फिर लोकल बस या ट्रेन में या अपनी सवारी से ऑफिस पहुँचता है,

वहाँ पूरा दिन काम करता है, साथियों के साथ चाय पीता है,
शाम को वापिस घर के लिए निकलता है,

घर के रास्ते में

बच्चों के लिए टॉफी, बीवी के लिए मिठाई वगैरह लेता है,

मोबाइल में रिचार्ज करवाता है, और अनेक छोटे मोटे काम निपटाते हुए घर पहुँचता है,

अब आप बताइये कि उसे दिन भर में कहीं कोई "हिन्दू" या "मुसलमान" मिला ?

क्या उसने दिन भर में किसी "हिन्दू" या "मुसलमान" पर कोई अत्याचार किया ?

उसको जो दिन भर में मिले वो थे.. अख़बार वाले भैया,

दूध वाले भैया,

रिक्शा वाले भैया,

बस कंडक्टर,

ऑफिस के मित्र,

आंगतुक,

पान वाले भैया,

चाय वाले भैया,

टॉफी की दुकान वाले भैया,

मिठाई की दूकान वाले भैया..

जब ये सब लोग भैया और मित्र हैं तो इनमें "हिन्दू" या "मुसलमान" कहाँ है ?

"क्या दिन भर में उसने किसी से पूछा कि भाई, तू "हिन्दू" है या "मुसलमान" ?

अगर तू "हिन्दू" या "मुसलमान" है तो मैं तेरी बस में सफ़र नहीं करूँगा,

तेरे हाथ की चाय नहीं पियूँगा,

तेरी दुकान से टॉफी नहीं खरीदूंगा,

क्या उसने साबुन, दूध, आटा, नमक, कपड़े, जूते, अखबार, टॉफी, मिठाई खरीदते समय किसी से ये सवाल किया था कि ये सब बनाने और उगाने वाले "हिन्दू" हैं या "मुसलमान" ?

"जब हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में मिलने वाले लोग "हिन्दू" या "मुसलमान" नहीं होते तो फिर क्या वजह है कि "चुनाव" आते ही हम "हिन्दू" या "मुसलमान" हो जाते हैं ?

समाज के तीन जहर

टीवी की बेमतलब की बहस

राजनेताओ के जहरीले बोल

और  कुछ कम्बख्त लोगो के सोशल मीडिया के भड़काऊ मैसेज

इनसे दूर रहे तो  शायद बहुत हद तक समस्या तो हल हो ही जायेगी.

      Copy.   Unknown .

Wednesday, 5 July 2017

जीवन बहुत सुंदर है ,महसूस करकेतो देखो

मैं इस जीवन से ऊब गई
नीरस और बेमजा
रोज- रोज वही काम ,वही खाना बनाना ,घर की देख- रेख
क्या रखा है जीवन में????
हमसे तो अच्छे ये पशु- पक्षी
निर्द्वद घूमना ,विचरण करना
न कल की चिंता , न भविष्य की परवाह
यह रोज की ऊठा - पटक
तंग आ गई हूँ ताने- बाने बुनते
क्या यही जीवन है????
नहीं , ऑखे खोलकर देखो और महसूस करके देखो
खाना खाते समय स्वजन के चेहरे पर तृप्ति का भाव
ऑफिस के सहकर्मियों के साथ हँसी - मजाक
सुबह - सुबह सूर्य की किरणों से ताजगी
चंद्रमा की शीतल चॉदनी और तारों की टिमटिमाहट
पेडो का झूमना और पक्षियों का कलरव
बारीश का गिरना और सागर का लहराना
मंदिर की घंटी और शंख का नाद
यह सब भी तो देखो और महसूस करके देखो
बच्चों से लाड लडाकर
बुजुर्गों का आशिर्वाद
किसी गरीब की सहायता
भूखे को खाना खिलाना
मेहमानों की आवभगत तथा उनके चेहरे पर मुस्कान लाकर तो देखो
जीवन बहुत सुंदर है ,उसे महसूस करके तो देखो

चालक के भरोसे गाडी

खिडकी पर बैठी सडक पर देख रही थी
लोग अपनी गाडी या बाईक घुमाकर और निकालकर आगे बढ रहे थे
बाईक के पीछे बैठे लोग निश्चिंत हो बैठे थे
उस पर भरोसा जो था
सब चालक के हाथों में था
वह सुरक्षित पहुंचाएगा या नहीं , वही जाने
जिंदगी भी तो ऊपर वाले के हाथ में है
वह जिस रास्ते से और जैसे ले जाय
हमारा तो कोई बस नहीं
हॉ, विश्वास जरूर करे कि वह हमें मंजिल तक जरूर पहुंचाएंगा
इन उबड- खाबड रास्तों और गढ्ढों से निकालकर
सब्र जरूर रखना है
जो भी वह करेगा हमारे भले के लिए ही करेगा
बस हम अपना कर्तव्य करें
बाकी सब उसके हाथ में सौंप दे