Friday, 15 December 2017

याद आया वह पल

बात बचपन की है जब मैं विद्यालय के मैदान में हिरणी जैसी कुलांचे भरती थी
सारा ध्यान यहॉ - वहॉ
शिक्षिका के टोकने पर कि कहॉ पर खोई है
मन कहॉ की उडान भर रहा है
तब नहीं जानती थी कि किसी दिन मैं आसमान की उडान भरूंगी
वह जमाना और था तब जब यह क्षेत्र केवल पुरूषों का
ऐसे समय में जब लडकियॉ घर से बाहर निकलती नहीं थी तब मैं जमीन से ऊपर उठ आसमान में उडान भर रही थी
देश की पहली महिला पायलट बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
आसमान में उडान भरते हुए और इतनी ऊंची उठने के बाद भी बचपन की याद नहीं भूली
जिसने इतना कुछ दिया
जीवन की  नींव भी यही पडी
विधालय में आने का सौभाग्य मिला तब बचपन जाग उठा
आसमान में उडान भर एकाग्रचित्त होना
यहॉ आकर स्वच्छंद हो गई
जी भर कर और मन खोलकर विचरण किया
यह अवसर को हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी
बहुत बडे - बडे जगह पर भले जाना हुआ
पर अपनापन तो यही आकर लगा
मेरा बचपन जो वापस जीवित हो गया था

पैसा बोलता है

पैसा बोलता है
बोलता क्या चलता भी है
क्यों पैसे में यह कौन - सी बात है
सब उसके पीछे दिवाने
कितना भी ज्ञान हो पर पैसा न हो तो.
क्या उसका फायदा
कौन आपको पूछता है
ज्ञान - वान सब धरा रह जाता है
अच्छे ब्रांडेड कपडे , मंहगी गाडी
फ्लेट , मंहगे फर्नीचर , यहॉ तक कि रंगरोगन भी
जरा घर बुलाकर देखो तो - यह विज्ञापन खूब चल रहा
आप किसी की गाडी को ठोक दें
अगर आप के पास पैसा - रूतबा है तो कोई बात नहीं
पर अगर आप साधारण टेक्सी वाले है
तब तो गाली - गलौज क्या लात- घूसे भी पडेगे
यहॉ व्यवहार भी व्यक्ति को देखकर होता है
आप संपन्न है तो प्रभावशाली भी होगे
हर चीज आप खरिद सकते हैं
सम्मान की तो बात ही क्या ???
वह भी मोल मिलता है
दुनिया उसके इर्दगिर्द घूमती है
सच ही है
बाप बोले न भैया , सबसे बडा रूपैया

पेट है सबसे भारी

भूख लगी थी , मन व्याकुल था
आज भोजन नहीं ला पाई
सोचा बाहर से मंगा लूगी
कोई मिला ही नहीं कि वह जा बाहर से ले आए
सब काम में व्यस्त थे
अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था
सब अपना डब्बा खोल कर खा रहे थे
शिष्टाचारवश लोगों ने पूछा
पर मेरा मन नहीं किया
पेट में भूख कुलबुला रही थी
दो - तीन बार पानी भी पी लिया
पर भूख तो भूख ही होती है
मन ललचाता रहा पर नियंत्रण कर बैठी रही
आखिर छुट्टी हुई
बाहर का ठेला जिसे देख नाक - भौं सिकोडती थी
ठेले पर का खाना तो कभी नहीं
न जाने कितनी गंदगी आसपास बिखरी रहती है
बर्तन भी बराबर धोए नहीं रहता है
उसी बालटी के पानी में डुबोकर निकालता है
बीमारी का घर बना कर बैठा है
आज कुछ नहीं देखा
क्या चाहिए मैडम
पूछने पर कहा
जो भी हो अच्छा वो दे दो
हमारे यहॉ का तो सब टेस्टी और मजेदार है
रगडा - पेटीस खाइए , मजा आ जाएगा
उस दिन का वह रगडा - पेटीज जो चटखारे ले खाया
सारे स्वाद फीके पड गए
अब समझ में आ गया था
भूख क्या होती है
पापी पेट का सवाल और भूखे भजन न होय गोपाला
सुना था पर आज अनुभव भी कर लिया था
पैसे होते हुए भी खाना नहीं मिला
भोजन का स्वाद समय देख कर होता है
भूख काल , स्थान कुछ नहीं देखती

Thursday, 14 December 2017

ईश्वर हैं ना

लॉन में बैठी हुई थी
ठंडी हवा चल रही थी
सूर्यदेव का आगमन हो रहा था
सुनहली धूप पसर रही थी
दृष्टि गई एक ऊँचे पेड पर
तन कर खडा था
उससे ऊपर देखा तो गगनचुंबी ईमारतें
पर आसमान का तो कोई सानी नहीं
वह तो सबसे ऊपर , उससे भी ऊपर ग्रह
धरती के भुगर्भ में न जाने क्या - क्या बन रहा
पर उसकी गहराई न जाने कितनी??
हम तो बीच में है
सारे जीवों का तथा सृष्टि कर्ता की रचना
उसकी चित्रकारी तथा समयनियोजन
दाद देनी पडेगी
हम तो केवल निहारते हैं , नष्ट करते हैं
इतनी समृद्ध धरती
इतना विशाल आसमान
इन सबके साथ हमारा ईश्वर
विश्वास रखिए
उसकी कृपा पर , उसके निर्णय पर
कभी संदेह नहीं
जग कर्ता आपके लिए जो भी करेगा
वह आपकी भलाई के लिए ही होगा

संघर्ष ही तो जीवन है

हमेशा लगता था कि मेरे जीवन में ही यह सब क्यों ???
कभी कुछ आसानी से हासिल नहीं
हमेशा समस्याओं से वास्ता पडता रहा
नजदिकी लोगों को देख कर मन खिन्न हो जाता
ऐसा नहीं कि उनसे कुछ ईर्ष्या  हो
पर मुझे यह सब क्यों नहीं ??
मेरे भाग्य में क्या लिखा है
आज सुबह मन कुछ उदास था
पीछे मुडकर देखा तो लगा नहीं
शायद मेरा यह सोचना गलत है
मुसीबतें तो बहुत आई और आती भी रहेगी
पर वह मुसीबत का क्षण कैसे निकल गया
आसानी से और आज कुछ याद भी नहीं
एक साथ न जाने कितनी
कहते हैं न जब मुसीबत आती है तो साथ में
मैं तो साधारण व्यक्ति
अगर ईश्वर का हाथ नहीं होता तो ???
भाग्य की लेखनी को तो कोई टाल नहीं सकता
इतनी शक्ति देनेवाला भी तो वही है
एक चोट बर्दाश्त नहीं करने वाला
इतना चोट कैसे बर्दाश्त कर लेगा
एक छोटे से काम से कॉपने वाला
बडा से बडा काम कैसे कर लेगा
बहुत बडी विडंबना जीवन की , जो हम नहीं चाहते
वह होता है हमारे साथ
उससे उबरने में भी वह ही मदद करता है
अगर टूट जाते तो कुछ नहीं पाते
बचे हुए को संभालने की कोशिश नहीं करते
हर हार , हार नहीं होती
जीवन का सबक होती है
इंसान तो गलतियों का पुतला है
पर क्या सब गलतियॉ हम ही करते हैं
ईश्वर की उसमें कोई भागीदारी नहीं क्या ??
ऊपर वाला नचैया तो नाच नचाता ही है
पर यह याद रखना
वह सब देख रहा है
आपके हर क्रियाकलाप का हिसाब रख रहा है
विश्वास रखिए
आपके साथ कोई अन्याय नहीं होगा.
आप मांगे या न मांगे
देनेवाला आपकी हर मुसीबत से वाकिफ है
उबारेगा , धैर्य रखिए
दुनिया के सामने मत रोइए
उस पर यकीन रखिए

हम कितने अमीर ???

एक आदमी था , गजब का आलसी
हमेशा अभाव का रोना तथा ईश्वर को कोसना
एक बार ईश्वर भेष बदलकर आए
पूछा क्या कमी है
जवाब ईश्वर ने बहुत अन्याय किया है मेरे साथ
लोगों को न जाने क्या - क्या दिया है
बंगला , कार ,पैसा , शोहरत सब कुछ
अच्छा ऐसा करो यह अपनी ऑखें मुझे दे दो
तुम्हें लाख रूपए दूंगा
अरे तो मैं देखूगा कैसे  , नहीं - नहीं मैं नहीं दूंगा
तो फिर ऐसा करो अपने पैर दे दो
तब भी उत्तर नहीं मिला
ऐसे करके एक - एक अंग की बोली लगाई
पर वह व्यक्ति माना नहीं
अंत में कहा - अपना हाथ दे दो
यह तो कदापि नहीं दे सकता
हाथ नहीं रहा तो मैं बेकार हो जाऊंगा
तब तो तुम्हारे पास करोडो का शरीर है
किडनी से लेकर ऑखें तक
तब भी तुम कहते फिरते हो
ईश्वर ने कुछ नहीं दिया
अब तक वह समझ चुका था , गलती का एहसास हो गया था
पूर्ण शरीर तथा हर अंग सही - सलामत
इससे ज्यादा ईश्वर का क्या उपकार होगा
अच्छा स्वास्थ्य रहे , यह नियामत क्या कम है
कर्म करे ,भाग्य को न कोसे
जीवन को सार्थक जीए
इतना मूल्यवान जीवन है , उसे ऐसे ही नहीं गवाना है

Wednesday, 13 December 2017

शब्दों के बाण

शब्द की महिमा अपरंपार
शरीर के घाव भर जाय पर शब्द के घाव??
शब्दों के इर्दगिर्द घूमती है दुनिया
जब शब्द बोला तब भीष्म को आजीवन ब्रहचार्य का व्रत लेना पडा
उसकी परिणिती महभारत के रूप में हुई
द्रोपदी एक कडी थी , बीज सत्यवती ने रखा था
देवव्रत की वीरता इतनी निरकुंश हो गई कि काशी नरेश की कन्याओं को जीत लाई
अंबा ने मुंह खोला वह भीष्म की मौत का कारण बनी भले ही पुर्न जन्म लेना पडा शिखंडी के रूप में
गांधारी बोल नहीं पाई और ऑखों पर पट्टी बांध ली
गांधार नरेश शकुनी बोल नहीं पाए पर बदला जरूर ले लिया ,महाभारत कराकर
धृतराष्ट्र बोल नहीं पाए राजमुकुट पांडु के सर ,
पर जिंदगी भर मुकुट को छोडा नहीं
द्रोपदी के चीरहरण के समय भी कुछ बोल नहीं पाए नहीं तो यह होता ही नहीं
यह तो महाभारत था
रामायण में जब कैकई ने बोला तो राम को चौदह साल का वनवास मिला
शब्द के हथियारस्वरूप जो दो वर थे पास में
आज भी देश में जंग छिडी है
शब्दों के तीर ढूढ - ढूढकर चलाए जा रहे हैं
किसकी भाषा कितनी प्रभावी है
काम नहीं शब्द बोल रहा है और जो इसमें बाजी मारेगा वही विजेता
शब्दों का प्रयोग कब और कहॉ करना है यह भी एक कला है
जिसे यह कला आ गई उसने सबको जीत लिया .

चुनाव चिन्ह का पडा अकाल

चुनाव का मौसम और प्रत्याशियों की भरमार
पार्टियॉ तो है ही उनके अपने चुनाव चिन्ह भी
क्षेत्रवादी पार्टियॉ और निर्दलीय भी है उम्मीदवार
सबको एक चिन्ह जरूर चाहिए
जनता पहचानेगी कैसे???
मत कैसे देगी ???
चरखा और गाय- बैलों की जोडी से शुरू हुआ आज झाडू तक आ पहुंचा है
अब तक झाडू उपेक्षित पडा था उसने एक चुनाव में सब पर झाडू फेर दिया
हॉ , उस समय हर जगह झाडू ही दिखाई दे रहा था
पर स्वच्छता का कहीं पता नहीं
भ्रष्टाचार की गंदगी में से उबारने के लिए निकला यह झाडू कहॉ है ???
हाथ जो कभी साथ नहीं छोड सकता , आज सब उसका साथ छोड रहे हैं
कब फिर से पकडेगे और कब अच्छे दिन आएगे ??
साइकिल के लिए तो विवाद चला पर तेज गति पकडने से पहले ही वह पंक्चर हो गया
कब ठीक होगा पता नहीं
कब तेज रफ्तार पकडेगी ???
लालटेन तो किसी के सहयोग से जला पर फिर उसने हाथ खीच लिया
अब बिना तेल - बाती के लालटेन बिसूर रहा है
हाथी की मस्त - मस्त चाल बीच में गायब हो गई थी वह अचानक से बैठ गया था
पर अब उठने की कोशिश कर रहा है
शेर की दहाड अभी कायम है अब वह अपनी गुफा से बाहर भी निकल रहा है
हॉ , कमल खूब खिल रहा है
कीचड से बाहर तो आ गया है पर कभी - कभी कुछ छिटे उसकी ही पंखुडियों से उड कर आ जाते हैं
उनसे बचकर रहना है
यह तो बडी पार्टियॉ है
छोटी  - छोटी न जाने कितने चिन्ह है
अब तो सोचना पडेगा कि कौन- सा किसको दिया जाएगा
पता चला भविष्य में फिल्मों की तरह इनका भी रिमेक बनेगा
और जनता पशोपेश में पडेगी कि कौन- सा पहला है कौन - सा दूसरा
कौन ओरिजनल है और कौन डुप्लीकेट

मैं तो भिखारी हूँ

मैं तो भिखारी हूं
भीख मांगना मेरी मजबूरी समझो या मेरा पेशा
पर मैं अपना यह काम पूरी निष्ठा और लगन से करता हूँ
लोगों के आगे हाथ जोडता हूं , गिडगिडाता हूं
कोई देता है कोई नहीं देता
कभी - कभी देते तो कुछ नहीं कोसते जरूर है
हाथ - पैर सही - सलामत होने पर भी भीख
कभी - कभी तो गालियॉ भी मिलती है
पर मेरा सर हमेशा झुका , मुख से आशिर्वाद
घृणा करने वालों से भी , कृपा करने वालों से भी
मैं चोरी नहीं करता , डाका नहीं डालता
अपराधी भी नहीं , किसी को धोखा नहीं देता
बस मांगता हूं पेट भरने के लिए
अगर मेरे पास भी सब कुछ होता तो यह काम नहीं करता
हाथ फैलाना किसे अच्छा लगता है
ईश्वर किसी को भी यह जीवन न दे
हाथ हमेशा देनेवाला बनाए , मांगने वाला नहीं
आप लोग को हमारी अहमियत नहीं लगती
पर हमारी हर दुआ आपको लगती है
जब मांगनेवाला ही न होगा तो देनेवाला किसे देगा??
हर त्योहार , पूजा - पाठ ,उत्सव पर हमें ढूढा जाता है
परमार्थ बटोरने के लिए
अपने जनम को सार्थक करने के लिए
दान देकर पुण्य कमाने के लिए
बहुत से लोग आपके सामने हाथ जोडते हैं
वोट मांगने के लिए नेतागण भी
पर वे बाद में आप पर हुकुम चलाते हैं
आपके कारण संपत्तिशाली बन जाते हैं
कहॉ से कहॉ पहुंच जाते हैं
पर हम तो वही जमीन पर सालो - साल आपके सामने हाथ फैलाते
दुआ देते फिर भी आप हमें भिखारी कहते हैं
एक - दो रूपयों में ही हजारों - लाखों का आशिर्वाद दे देते हैं
इतने सस्ते में आप कौन - सी चीज खरिद पाएगे??
अब तो आपको मेरी अहमियत का पता चल गया होगा
हमें भी इंसान समझिए
भिखारी है लुटेरे नहीं.

Tuesday, 12 December 2017

बधाई हो विराट - अनुष्का

बधाई हो विराट - अनुष्का
नयी खूबसूरत जोडी , सदा बनी रहे
मंसूर अली पटौदी और शर्मिला टैगोर के बाद
यह दूसरा मिलन क्रिकेट और फिल्म का
विराट भारतीय क्रिकेट के मशहूर खिलाडी
अनुष्का फिल्म जगत की नामचीन अभिनेत्री
कम समय में ही शोहरत हासिल की
सफलता की उंचाई पर पहुंचे
करियर बुलंदी पर है
यह प्रेमल जोडा ऐसे ही सदाबहार बना रहे
दर्शकों और चाहनेवालों की अपेक्षा पर खरा उतरे
जो कुछ था सब जगजाहिर किया
प्रेम का इजहार सरेआम किया
क्रिकेट के मैदान में बल्ले से
कुछ बीच में अनबन हुई वह भी
आखिर उतार - चढाव के बीच शादी के बंधन में बंध ही गए
ना - ना करते - करते हॉ - हॉ हो गई
अब नया जीवन हंसी - खुशी  बीते
यही दोनों के चाहने वालों से अपेक्षा है
अपने नाम के साथ क्रिकेट - फिल्म और भारत का नाम भी ऊँचा करे

चुनाव गुजरात का ,बात पाकिस्तान की

गुजरात चुनाव में क्या कुछ नहीं हो रहा है
प्रचार में क्या - क्या नहीं कहा और सुना जा रहा है
तोहमत लगाई जा रही है
दुष्प्रचार किया जा रहा है
घर्म से लेकर देशभक्ति पर संदेह
पूर्व प्रधानमंत्री पर भी
यह आरोप भारत के वर्तमान प्रधाननंत्री मोदी जी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर लगा रहे हैं
यह कोई साधारण बात नहीं है
देश से बडा तो कोई नहीं
अगर यह बात है तो वाकई गंभीर है और विदेश मंत्रालय तथा संबंधित विभाग को संज्ञान लेना चाहिए
जो भी दोषी है उसे कठघरे में खडा किया जाय
केवल अनर्गल आरोप नहीं उसे अगर सही है तो सबूतों सहित साबित किया जाय
जनता को गुमराह नहीं किया जाय
सही बात बताई जाय
वोट के लिए देश की अस्मिता के साथ खिलवाड नहीं करना है
चुनाव हमारा और बात पाकिस्तान की
यह हिन्दूस्तान और पाकिस्तान की लडाई नहीं है
गुजरात विधान सभा का चुनाव है
मुख्य मुद्दा गुजरात का विकास
वहॉ सुविधा , वहॉ की जनता की जरूरत - अपेक्षा
उनकी परेशानी को दूर करना
पर यहॉ का चित्र तो कुछ अलग है
धर्म , जाति , गाली ,अपशब्द ,व्यग्य का भरपूर प्रयोग
गुजरात की जनता को यह रोकना पडेगा
कोई उनसे भावनात्मक खेल न खेले
उनके मुद्दों को पीछे छोड व्यक्तिगत लडाई लडे
पाकिस्तान को भी इसमें ले आए
इसकी जरूरत नहीं है
पाकिस्तान को तो न जाने कितनी बार मुंह की खानी पडी है और आज वह भी बोल रहा है कि हमें न घसीटे
क्यों हमारे नेता इतने कमजोर है क्या ???

Monday, 11 December 2017

बचपन खो गया पर बूढापन

बचपन में दादी से एक कहानी सुनी थी , बारात  में किसी बूढे को मत लाना
वर पक्ष चिंता में पड गए
सारे रीति- रीवाज और महत्तपूर्ण काम उनसे पूछकर करना
आखिर उन्होंने एक लकडी का बडा बक्सा बनवाया
उसमें दो- तीन जगह छिद्र किए ताकि सॉस लिया जा सके
बूढे दादा को बिठाया और बारातियों के सामान के बहाने वह बक्सा भी गया
वधु पक्ष के कठिन से कठिन प्रश्न का प्रत्युत्तर दिया गया
उनको शंका हुई कि कोई न कोई बुजुर्ग इनके साथ अवश्य है
उनको आदर - सम्मान से निकाला गया
तात्पर्य कि अनुभव से बडा गुरू कोई नहीं
आज समय बदल गया है
बुजुर्ग हाशिए पर आ गये हैं
अब उनसे कोई सलाह नहीं लेता
उनके पास बैठने से कतराते हैं
अब वह घर का मुखिया नहीं बल्कि भार बन गया है
मुखिया तो छोडिए , उसे व्यक्ति भी नहीं समझा जाता
यह भूल जाते हैं कि यह वहीं मजबूत पेड है जिसके हम फूल - फल हैं
यह उनकी मेहनत का फल है
आज भी हमारी जमीन को कसकर पकड रखा है
कोई ऑधी - तूफान से बचाने के लिए
बचपन को तो हम खो ही रहे हैं
बूढेपन के आशिर्वाद भरे हाथ को भी रोक रहे हैं
उनकी बात हमें बकवास लगती है
पोपले भरे और झु्र्रीदार चेहरे हमें नहीं सुहाते
बच्चों को भी उनके प्रेम से दूर कर रहे हैं
यह भूल जाते हैं कि यह वक्त सब पर आनेवाला है
सम्मान न दे पर कम से कम तिरस्कार तो न करें
वे कहॉ जाएगे अपने बसाए संसार को छोडकर
क्रेश मॉ- बाप का प्यार बच्चे को नहीं दे सकता
उसी तरह वृद्धाश्रम भी अपनापन नहीं ला सकता
उनको घर में ही रखिए
अपनों के बीच
इतनी जिम्मेदारी तो बनती है जन्मदाता के प्रति
मत भूलिए आप उनसे है वे आपसे नहीं

आपके ,अपने पैसों पर भी डाका

सरकार विधेयक लाने जा रही है बैंक मे रखे पैसे पर
अब तो आपका पैसा बैंक में भी सुरक्षित नहीं
उस पर ऑख लगी है
नोटबंदी और जी एस टी  के बाद इस तरह की मार
जिंदगी भर , पेट काट कर , रूपए बैंक में रखे
अपने सुरक्षित भविष्य के लिए
बैंक दिवालिया हो गया तो पैसे डूब जाएगे
वह किसी दूसरी जगह भी पैसों का उपयोग कर सकता है यानि आप जब चाहेगे तब आपके पैसे नहीं मिलेगे
उसका निवेश बैंक कहीं भी कर सकती है
यह तो सरासर अन्याय है
सेवानिवृत्त होने के बाद अपने पैसों को लोग बैंक में रखते हैं ताकि समय - समय पर उनकी जरूरत पूरी हो सके
गरीब और मध्यम वर्ग पर तो गाज गिर जाएगी
वह तो जीते - जी मर जाएगे
कहीं ऐसा तो नहीं कि
सूट - बूट की सरकार.    सिद्ध करने में यह लगी है
शासक और शासन जनता के लिए होते है
नियम - कानून उसके लाभ और भलाई के लिए होते हैं
जनता को दुखी कर कोई भी ज्यादा देर तक टिक नहीं सकता
विश्व का सबसे बडा जनतांत्रिक देश
इतनी बडी जनसंख्या
हर राष्ट्र लोहा मानता है हमारे प्रजातंत्र की
उसकी रीढ कहीं चरमरा न जाए
नेता यह याद रखे
आप जनता से हैं जनता आपसे नहीं

दंगल गर्ल की व्यथा

यह किसी एक बेटी की व्यथा नहीं
भारत की लाखों - करोडो बेटियों की व्यथा
बेटियॉ घर- बाहर और सार्वजनिक स्थान पर भी असुरक्षित
मर्दों की इतनी हिम्मत कि हवाई जहाज जैसी जगह पर लोगों  के बीच इस तरह का व्यवहार
बेटी पढाओ - बेटी बचाओ
बेटी का बाहर निकलना मुश्किल तो पढेगी और आगे कैसे बढेगी  ????
हम तो यह सोचते थे कि ट्रेन - बस में ऐसी घटनाएं होती है पर हवाई सफर में भी
पहला दर्जा , दूसरा दर्जा का टिकट छोड ए सी का टिकट लेने पर भी वही हाल
कोई भी कहीं भी सुरक्षित नहीं
घर से निकले और न जाने कौन - सी  वारदात घट जाए
घर वाले चिंतित जब तक सही सलामत घर न पहुंच जाए
बेटी ही क्यों बेटे के लिए भी मन डरता है
वह भी तो सुरक्षित नहीं
न जाने बच्चों के साथ पाठशाला - विधालय में ऐसी कितनी घटनाएं घट चुकी है
ऐसी विकृत मानसिकता वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए
किसी बेटी को इस तरह सिसकना न पडे
यह बेटी तो एक सेलिब्रिटी है पर न जाने कितनी बेटियॉ सामने न आ पा रही होगी
घर बैठ कर सिसक रही होगी
बदनामी के डर से चुपचाप बैठ जाती होगी
कोई मदद को नहीं आता , इसमें भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए
लोग डरते हैं
व्यवस्था ही ऐसी बन गई है , मुँह खोलने वालों  के भी दस दुश्मन बन जाय
पुलिस और दंबंगों के कारण परेशान हो जाय
कौन सुरक्षा की गांरटी लेगा
बहुत बडा प्रश्न चिन्ह है कानून व्यवस्था पर
हर व्यक्ति डरा - सहमा सा है
स्वतंत्र तो है पर ऐसी आजादी
इस आजादी से तो तानाशाही भी ठीक होगी
जब घर से बाहर निकलने में डर हो
तो घर में रहना भी तो एक तरह की कैद है
किस पर विश्वास किया जाय , किस पर नहीं
कहॉ जाया जाय , कहॉ नहीं
घर से कब निकला जाय और कब आया जाय
ऐसी बंधन भरी जिंदगी एक प्रकार की गुलामी ही है
विकास का राग अलापने वाले हमारे नेता समझे कि किसी भी विकास का रास्ता डर से होकर नहीं गुजरता
यह केवल झायरा वसीम   की नहीं
हिंदूस्तान के हर व्यक्ति की व्यथा है
समय पर निवारण न हुआ तो ऐसी घटनाएं घटती रहेगी

Sunday, 10 December 2017

अगर शिक्षक पति हुआ तो

शिक्षक महोदय से शादी हुई
पहली ही रात पूरा इंटरव्यू लिया
क्या नाम ,कहॉ से पढी , विषय क्या- क्या ??
सुबह हुई तो उठाने लगे
सुबह ज्यादा देर तक सोना नहीं चाहिए
सेहत पर असर पडता है
व्यायाम करना चाहिए
लेक्चर खत्म हुआ
अब नाश्ते की बारी
तो किस चीज में कौन - सा विटामिन मौजूद
A B C D F E  सबके बारे में जानकारी मिली
छुट्टी के दिन घूमने गए
तो प्रदूषण की बारी आई
कैसे रोकना और क्या करना सारी बातें
फिर लोगों के कपडों की बारी
आजकल लोग क्या वाहियात कपडे पहनते हैं
पूरा दिन बच्चे मोबाईल पर रहते हैं
भविष्य चौपट हो रहा है
मैंने टोका
पर हमारे तो अभी बच्चे नहीं है
फिल्म देखने गए तो नैतिकता की दुहाई
निर्लज्जपन और अश्लील दृष्यों को दिखाने में एतराज
बाहर निकले तो खाना खाने हॉटेल में गए
वहॉ भी हर बात में  नाक - भौ सिकोडना
अब टेक्सी पकडे तो टेक्सी वाले पर बरस पडे
थूकना और गाली देना अच्छी बात नहीं
घर पहुंचे तो किताब लेकर बैठ गए
कल सुबह की तैयारी करनी है
कक्षा में बच्चों को पढाना है
नहीं पता था कि शिक्षक इतना नीरस होगा
खैर शाम को घर आए
एकाध शेरो - शायरी सुनाने लगे
अच्छा लगा पर दुसरे ही क्षण माथा पकड कर बैठी
शायरी को अर्थ सहित समझा रहे थे जनाब
अब भविष्य एकदम साफ नजर आ रहा था
सारी उम्र अर्थ ,अनुवाद और भाषण ही सुनना पडेगा
प्यार - वार की बात वे कैसे करे
समाज को दिशा देने वाला
नई पौध को तैयार करने वाला शिक्षक जो है
वह सामान्य आदमी नहीं है
उससे सबकी अपेक्षा है
और वह उस पर खरा उतरने की हर पल कोशिश करता रहेगा
फिर वह चाहे घर हो या क्लास रूम

एक मुस्कराहट भी काफी है

बस स्टॉप पर खडी थी , बस के इंतजार में
एक बुजु्र्ग भी खडे थे मटमैला कुरता - पाजामा पहने
बसस्टॉप पर बैठने की जगह एक शख्श सोया था और एक बैठा - बैठा थूके जा रहा था
सुबह - सुबह यह दृ्श्य देख मन खिन्न हो गया
अचानक एक नौजवान बाईक से गुजरा
बाइक रोक पूछा - बाबा कहॉ जाना है
युवक ने मराठी में बोला था पर बाबा समझ गए थे
बोले  नायर अस्पताल जाए का है बचवा
युवक ने उत्तर दिया - या बसा , मी सोडते तुम्हाला
अब तो मुस्कराने की मेरी बारी थी
भाषा और प्रान्त की जगह इंसानियत जीत रही थी
              ऐसा ही वाकया मैं जब वापस आ रही थी
टेक्सी में बैठ कर
सूखी खॉसी थी आती थी तो थमती नहीं थी
टेक्सी वाले ने पानी दिया ,पहले तो मन नहीं हुआ पीने का पर उसका प्रेम देख पी ली
उसके बाद उसने जेब से हॉल्स निकालकर दिया
और जब मैं उतरी तो Thank you बोले बिना मन नहीं माना
अगर बुराई है तो साथ में अच्छाई भी है तभी तो यह संसार चल रहा है.

अब तो मुंबई भी धुंध के घेरे में

मुंबई का मिजाज दो दिन से बदला - बदला सा है
ठंड वातावरण और नमी यह मुंबई वासियों को ज्यादा नहीं दिखाई देता
यहॉ तो ठंड कब दबे पैर आती है और कब जाती है
पता ही नहीं चलता
रंगबिरंगे स्वेटर और शॉल से वे वंचित रह जाते हैं
जब कभी तेज हवा चलती है तो मुंबई वाले घर से बाहर आनंद लेने के लिए निकलते हैं
बारीश के पानी नें फुटबाल खेलते हैं और तैराकी करते मुंबई कर को देखा जा सकता है
किसी भी मौसम की अति नहीं
पर कुछ वर्षों से मुंबई का मौसम भी रंग बदल रहा है
कभी बारीश में डूब रही होती है
तो कभी गर्मी में जल रही होती है
और अब तो धुंध छाया हुआ है
कोहरा भी नया ही है और अच्छा भी लगता है
पर यह कहीं प्रदूषण का संकेत तो नही??
दिल्ली के बाद अब मुंबई की बारी तो नहीं ???
इसका असर हवाई सेवा और मुंबई की लाइफ - लाइन कही जानेवाली लोकल ट्रेन पर भी पडा है
२४ घंटे अपनी रफ्तार में चलनेवाली मुंबई को घने कोहरे का सामना करना पडा है
मुंबई वासी तो पॉच- दस मिनट की देरी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते
भागने - दौडने की जो आदत पड गई है
इस धुंध को हल्के में नहीं लेना है
क्या पता यह धुंध मुंबई की रफ्तार को रोक दे
सजग - सचेत रहना होगा
-२६ जुलाई फिर से न दोहराया जाय

स्नेह बंधन टूट रहा है

संबंधों को रोग लग गया है
उसे इलाज की जरूरत है
माता - पिता बच्चों को डाट नहीं सकते
दंडित नहीं कर सकते
बहन चिढा नहीं सकती
अगर हुआ तो बच्चा उनकी जान ले सकता है
नोयडा में यही हुआ है
१६ साल के किशोर ने मॉ - बहन की इसी कारण हत्या कर दी
यहॉ दोष केवल बच्चे का ही नहीं है कहीं सारा समाज तो जिम्मेदार नहीं है
इतनी अपेक्षा छोटी उम्र से कि वह तनावग्रस्त हो जाता है
उसे व्यक्ति केन्द्रित बना दिया जाता है
उसे किसी बात की ना सुनने को नहीं मिलती
हर ईच्छा पूरी की जाती है
कोई कुछ बोल नहीं सकता यहॉ तक कि आज शिक्षक को भी यह अधिकार नहीं है
घर के बडे बुजुर्गों का मॉ - बाप ही आदर नहीं करते
संयुक्त परिवार तो बचा ही नहीं
परिवार के नाम पर.   हम दो हमारे दो या एक
एक जमाना था जब पडोसियों का भी बच्चों पर अधिकार होता था
शिक्षक न जाने कितनी उठक- बैठक लगवाते थे
पिताजी का गुस्सा हम पर नहीं मॉ पर उतरता था
मॉ की ऑखों में हमारे कारण ऑसू देख हम दुखी हो जाते थे तथा सोचते थे अब दुख नहीं देगे
मित्र ,रिश्तेदार , चाचा ,बुआ ,दादा - दादी न जाने कितने रिश्ते होते थे
आज वह रिश्ते कहॉ है??
हम ही खत्म कर रहे हैं
कोई आ गया तो मुँह बन जाएगा
भावनाए तो मर गई है
मॉल में , रिसोर्ट में जाकर आंनदित होगे पर अपनों के बीच नहीं
बच्चे को भी सबसे दूर रखा जाता है
त्योहार या शादी  - ब्याह में जबरन संबंध निभाया जाता है
कोई किसी को स्वीकार करना नहीं चाहता
तब बच्चे कैसे स्वीकारेगे
इन सब का दोषी बच्चा ही नहीं
समाज , परिवार भी दोषी है
इतनी क्रूरता कि मॉ - बहन की हत्या कर दे डाटने पर
यह तो खतरे की घंटी है
अभी तो इक्का - दुक्का घटनाएं दिख रही है ,आगे परिणाम और भयंकर होगा