Saturday, 31 October 2020

सबको छोड़ आगे बढ़ें

जिंदगी भर यही सोचते रहें
कल क्या हुआ था
कैसे बीत गया
मन मसोसकर रह जाता है
न कोई ख्वाब पूरे हुए न सपने
जिंदगी की आपाधापी में जीवन गुजर गया
पीछा छूटता ही नहीं है इनसे
ये कल आज में भी जीने नहीं देते
थक जाते हैं सोचते सोचते
ऐसा क्यों हुआ
हमारे साथ ही
ऐसा क्यों कहा
हमने तो न किसी का कुछ बिगाडा
न कभी किसी का बुरा चाहा
न किसी को व्यंग्य तजा
फिर भी
फिर भी
अब मन चाहता है सबसे मुक्त होना
बहुत निभा लिया
बहुत सह लिया
बहुत भार ढो लिया
ढोते ढोते दब से गए हैं
न ढंग से जी पाए
न ढंग से मर पाएंगे
अगर यही हाल रहा तो
नौकरी से तो रिटायर हो ही चुके
अब इन सबसे रिटायर होना है
पीछे मुड़कर देखना ही नहीं है
अब तक जो भी हुआ
जैसा भी हुआ
हुआ सो हुआ
वह नियति की इच्छा थी
हम भी मजबूर थे
पलट पलट कर देखना
कुछ हासिल नहीं
तब इन सबसे क्यों मन को बोझिल करें
सब छोड़छाड आगे की ओर बढे

Friday, 30 October 2020

यही है हर नारी की कहानी

एक ने मुझे जन्म दिया
एक को मैंने जन्म दिया
दोनों ही मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा
दोनों की अलग-अलग भूमिका
एक बात है काॅमन
वह है प्यार भरा रिश्ता
इनकी जगह न कोई दूजा

एक अपना भरपूर प्यार लुटाती
एक ने मुझे जन्म दिया
एक को मैंने जन्म दिया
दोनों ही मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा
दोनों की अलग-अलग भूमिका
एक बात है काॅमन
वह है प्यार भरा रिश्ता
इनकी जगह न कोई दूजा

एक अपना भरपूर प्यार लुटाती
दूजे पर मैं वारी जाती

एक ने मुझे चुना अपने लिए
दूजे को मैंने स्वीकारा अपने लिए

एक मेरी ऑखों में ऑसू नहीं देख सकती
दूजे की ऑखों में मैं ऑसू नहीं सह सकती
एक की ऑखों का मैं तारा
दूजा मेरी ऑखों की रोशनी

एक मेरा भविष्य
एक मेरा भूतकाल
इनके बिना मैं अधूरी
यही है हर नारी की कहानी

Thursday, 29 October 2020

नहीं रहना इस बेरहम दुनिया में

आज आखिर वह दिन आ ही गया
मैं भी रूखसत हो जाऊंगा
इस निर्दय दुनिया से
बचपन से ही मैं उपेक्षित
कभी कोई तो कभी कोई
पशु-पक्षियों तक
छिन्न-भिन्न करते रहे
मेरे पत्तों को नोचते रहें
मैंने हार नहीं मानी
बरखा रानी की कृपा से बडा हो गया
लहलहाने लगा
बहार आने लगी
फलने फूलने लगा
अब सबकी निगाहें मुझ पर
कोई फल तोड़ता
कोई पत्तों को
कोई पत्थर मारता
कोई डालियों को तोड़ता
तब भी मैं सहता रहा
छाया देता रहा
पक्षियों को आसरा देता रहा
तब भी मैं कुछ की ऑख में किरकिरी बना रहा
मेरी लकडी उनको भा रही थी
ललचाई नजरों से ताक लगाए बैठे थे
काटना चाह रहे थे
कानून के डर से काट नहीं सके
तब मेरी जडो में तेजाब लाकर डाल दिया
मैं मुरझाने लगा
धीरे-धीरे फूल पत्ते सब झड गए
मैं ठूंठ बन गया
सब छोड़कर चले गए
अब तो कोई पास भी नहीं फटकता
जानता हूँ
मुझे इस हालात पर पहुंचाने वाले आएंगे
काट काटकर हाथगाडियो पर ले जाएंगे
अब बस उसी दिन का इंतजार
नहीं रहना इस बेरहम दुनिया में

मत कहो जमाना खराब है

लोग कहते हैं कि
जमाना खराब है
तब भी तो लोग जिया करते हैं
इसी जमाने के साथ
यह कोई आज ही नहीं
कल भी था
आज भी है
कल भी रहेगा
यह वाक्य भी कहते रहेंगे
यह वाक्य भी सुनते रहेंगे
जमाना तो हमसे है
हम जमाने से नहीं
उसे जैसा बनाएं
यह तो हमारे हाथ में
हर जमाना अपनी छाप छोड़ता है
बहुत सारी बातें सिखाता है
राम - रावण से लेकर सिंकदर तक
जो हो रहा है
हम जो कर रहें हैं
यही तो जमाना है
यही द्रोपदी को निरवस्र करने का प्रयास हुआ
यही बालि ने सुग्रीव की पत्नी तारा को बलात् अपनाया
यही गांधारी  की नेत्रहीन से ब्याह हुआ जिसका परिणाम महाभारत हुआ
यही सीता का हरण हुआ
यही अहिल्या शिला में परिवर्तित हुई
यही तुलसी के साथ छल हुआ
उस समय से लेकर आज तक बहुत बदलाव
साधन संसाधन और तरक्की
हाॅ मानसिकता नहीं बदली
जब तक मानसिकता नहीं बदलेंगी
हम जमाने को दोषी ठहराते रहेंगे
तब यह मत कहिए
जमाना खराब है

Wednesday, 28 October 2020

रिश्ते खूबसूरत तो जिंदगी खूबसूरत

कपडा धोया
बर्तन धोया
फर्श धोया
सब साफ सफाई
साबुन और डिटर्जेंट से
देह - शरीर को भी रगड रगड कर
बालों को भिन्न भिन्न शैम्पू से
धूल - धक्कड
गर्दा - मिट्टी
सब जाडा
फर्नीचर  की चमक धीमी
उस पर पालिश
लोहे वाले की जंग
रंग रोगन करना
घिस घिस कर छुडाना
व्यस्त रहते हैं इनमें
हर दिन हर हफ्ते हर महीने हर साल
यह तो भौतिक संशाधन
चमक जाएंगे
नए जैसे लगने लग जाएंगे
संबंधों पर भी कभी-कभी धूल जम जाती है
नीरस पड जाते हैं
गलतफहमियां हो जाती है
प्रेम और स्नेह में जंग लग जाता है
अपनापन खत्म होते जाता है
उसको भी तो चमकाना है
वहीं गर्माहट और अपनापन लाना है
इसका एहसास कराना होगा
रिश्तों को बचाना होगा
उस पर जमी धूल की परत को झाडना होगा
फर्नीचर खूबसूरत हो तो घर खूबसूरत
रिश्ते खूबसूरत तो जिंदगी खूबसूरत

फिर भी हाय हाय करना है

एक दिन सब कुछ छोड़ चले जाना है
यह है सबको पता
फिर भी हाय हाय करना है
कुछ साथ नहीं जाना है
सब यही रह जाना है
जाना भी अकेले ही है
फिर भी इस दुनिया के झमेले में फंस रहना है
अपने ही हाथों से सब करना है
जिंदगी को कैदखाना बनाना है
तब तक दिन काटना है
जब तक सब छोड़ नहीं जाते
माया जाल में फंस चक्कर काटना है
गोल गोल घूम फिर उसी स्थान पर आना है
सारे प्रयत्न
सारी जद्दोजहद
सब यही रह जाना है
एक दिन सब कुछ छोड़ चले जाना है
यह है सबको पता
फिर भी हाय हाय करना है

Tuesday, 27 October 2020

एक शराबी की जुबानी

तू है मेरी जान
तेरे बिना मैं बेहाल
मेरे रातों की नींद तू
मेरे दिल का चैन तू
मेरी हमसफर
मेरी दिलरुबा
मेरे अकेलेपन की साथी
मैं और तू
उसमें नहीं किसी और का काम
तुझसे बिछुडना नहीं गंवारा
कोई नाराज हो या खुश
उसकी नहीं कोई परवाह
तू ही खुदा मेरी
तुझमे सारा जग दिखता
मेरी दुनिया तुझमे समाई
एक बार जब थाम लिया
तब सब स्वर्ग का आंनद मिल गया
घूंट घूंट उतरती तब दिल को ठंडक मिलती
अमृत की बूंदों की तरह छलकती
गले को तर करती
कुछ न साथ बस हो तेरा साथ
तब क्या गम
मेरा सब गम तू हर लेती
सब दुख दर्द भूला देती
जब एक घूंट अंदर जाती
तब सब कुछ हो जाता हवा हवा
मदहोशी का आलम
साकी और प्याला
इससे दूजा न कोई प्यारा
तू ही मेरी जान
तू ही मेरा जहान
तुझ बिन लागे सब अधूरा
तू है मेरी प्यारी शराब

हंसते हुए जाना

रोते हुए आना हंसते हुए जाना
यह है जिंदगी का फंडा

जब नवजात बाल का रोता हुआ आगमन होता है
तब माता के चेहरे पर एक हंसी और मुस्कान

जब बेटी की बिदाई होती है
तब उस समय का दृश्य
हंसी और खुशी के साथ ऑसू

जब कोई परीक्षा परिणाम मननुसार आता है
तब भी ऑसू की झिलमिलाहट में हंसी

जब प्रेमी और प्रेमिका को एक दूसरे को देखते ही
चेहरे पर हंसी और मुस्कराहट

जब दोस्तो का जमघट हो
बिना कारण खिलखिलाहट
वह होती है जवानी की हंसी

जब अपनों से भेंट होती है
उपहार प्राप्त होते हैं
गले और हाथ मिलते हैं
वहां हंसी संपूर्ण रूप में विद्यमान

कब हंसना और कब न हंसना
इसके भी कुछ पैमाने है
एक मुस्कान और हंसी दिल जीतने का माद्दा रखती है
हंसने में कुछ बिगड़ता नहीं
बल्कि स्वास्थ्य भी सुधरता है

आए थे भले रोते हुए
जाइए हंसते और हंसाते हुए
आपकी याद में ऑसू के साथ मुस्कान आ जाए
तब समझना आपने जीवन जी लिया

संघर्षों की मिली जुली कहानी

वह सूर्य क्या जिसमें प्रकाश न हो
वह चंद्रमा क्या जिसमें चांदनी न हो
वह धरती क्या जो उदार न हो
वह सागर क्या जो विशाल न हो
वह वृक्ष क्या जो छायादार न हो
वह नदी क्या जो पानीदार न हो
वह वायु क्या जिसमें बहाव न हो

वह बचपन क्या जिसमें चंचलता न हो
वह पुरुष क्या जिसमें गंभीरता न हो
वह नारी क्या जिसमें कोमलता न हो
वह माता क्या जिसमें क्षमाशीलता न हो
वह पिता क्या जिसमें कर्मठता न हो

वह बालपन क्या जिसमें अठखेलियां न हो
वह जवानी क्या जिसकी कोई कहानी न हो
वह बूढापा क्या जहाँ अनुभव न हो
वह मानव क्या जिसमें मानवता न हो
वह जीवन क्या जहाँ हंसना - रोना न हो
सुख - दुःख से परे हो
वह संन्यासी क्या जिसमें लोलुपता हो
संघर्षों की मिली जुली कहानी
यही तो है जीवंतता की निशानी

जो डरा वह कुछ नहीं कर पाया

वह फूल क्या जिसमें कांटे न हो
वह डगर क्या जो पथरीली न हो
वह नदी क्या जिसमें भंवर न हो
वह मौसम क्या जिसमें झंझावात न हो
वह बिजली क्या जिसमें कडकडाहट न हो
वह सपने क्या जिसमें उडान न हो
वह मंजिल क्या जो कठिन न हो
वह जीवन क्या जिसमें संघर्ष न हो

कंकरीली पथरीली राहों पर चलना है
हर राह को आसान बनाना है
कितनी भी मुश्किल हो डगर
कितना भी ऊंचा हो पहाड़
चढना तो तब भी है
नीचे बैठ दृश्य नहीं देखना है
तैरना न आए कोई बात नहीं
नदी में उतर जाइए
हाथ पैर मार कर तो देखो
क्या पता किनारा मिल ही जाए
जो डरा वह कुछ नहीं कर पाया

यह सबके बस की बात नहीं

मैं बडा
मैं अच्छा
मैं महान
मैं मिलनसार
मैं दानदाता
मैं विनम्र
मैं समझदार
मैं क्षमाशील
मैं त्यागी
मैं सच्चा
सारे गुण मुझमें
तब फिर क्यों नहीं बन पाता अपना
वह बात कुछ यू है
आप सर्वश्रेष्ठ हो
सर्वगुण हो
पर अंहकार से घमंड से चूर हो
अंहकारी और घमंडी के नजदीक कोई नहीं जाना चाहता
आत्मसम्मान तो सबको प्यारा होता है
उसकी हत्या करना
यह सबके बस की बात नहीं

Sunday, 25 October 2020

विजयादशमी की शुभकामना

बुराई पर अच्छाई की विजय
असत्य पर सत्य की विजय
शक्ति की पूजा का पर्व
सबको माॅ भगवती का आशीर्वाद मिले
जीवन नई उमंगो और प्रेरणा से भरे
नई उम्मीद नये अवसर प्राप्त हो
जीवन में सुख समृद्धि का वास हो
   यही शुभकामना है दशहरा मंगलकारी हो

यही तो नवरात्र का संदेश है

नव दुर्गा की उपासना
शक्ति की पूजा
यह है हमारी समृद्ध भारतीय संस्कृति
जहाँ नारी को नर से ऊपर का दर्जा दिया गया है
वह चाहे संपत्ति की देवी लक्ष्मी हो
विद्या की देवी सरस्वती हो
आसुरी शक्तियों का नाश करने वाली काली हो
भगवान भोलेनाथ की अर्धांगनी माता पार्वती हो
कहीं भी दोयम दर्जा नहीं है
फिर हमारे समाज की ऐसी सोच कैसे हो गई
औरत को हीन कैसे समझा जाने लगा
शास्त्रों में तो कहीं ऐसा उल्लेख नहीं है
एक से एक विदुषी नारियां हुई है
जानकी , द्रोपदी से लेकर लक्ष्मी बाई तक
ये विद्रोहणी नारियां भी हुई है
जिन्होने लीक से हटकर कदम उठाया

शायद पुरूषवादी मानसिकता को यह स्वीकार नहीं हुआ
तभी उसने दबाना शुरू किया
उसके अस्तित्व को नकारने लगा
जो कुछ है वह है
वह जैसे चाहेंगा वह होगा
धीरे-धीरे प्रक्रिया बढने लगी
और वह जो चाहता था वैसा होने लगा
औरत पैर की जूती बना दी गई

आज फिर परिवर्तन हो रहा है
वह अधिकांश को पच नहीं रहा है
उनके अहम को ठेस लग रही है
वह दबाने की भरपूर कोशिश कर रहा है
सफल नहीं हो पा रहा है
तब अनर्गल तरीके अपना रहा है
सडी हुई मानसिकता से उबर नहीं पा रहा है
इसलिए समाज का संतुलन बिगड़ रहा है
जब तक वह शक्ति की शक्ति को पहचानेगा नहीं
उसकी अहमियत को स्वीकार नहीं करेंगा
तब उसका परिणाम भी उसे ही भोगना होगा
अंतः शक्ति की शक्ति को पहचाने
यही तो नवरात्र का संदेश है

Saturday, 24 October 2020

वास्तविक बने

यह नास्तिक है
ईश्वर को नहीं मानता
वह आस्तिक है
दिन रात ईश्वर की उपासना में मग्न
व्यक्ति को इसी हिसाब से ऑका जाता है
भगवान सब देख रहा है
सही है भाई
वह सर्वशक्तिमान है
उसकी दृष्टि से कोई बच नहीं सकता
कर्मफल तो भोगना ही है
लाख उपासना कर लो
भजन कर लो
मालाफूल चढा लो
दान बाॅटो
फिर भी हिसाब तो होगा ही
आज नहीं अगले जन्म में
ईश्वर की सत्ता तो है
नास्तिक भी हो तो क्या ?
प्रकृति को तो नकारा नहीं जा सकता
यह तो प्रमाण है
कोई शक्ति है जो संचालन करती है
भाग्य , ज्योतिष , राशि
सब इसके ही भाग है
कल से तो सब अंजान
कल क्या पल में क्या हो
यह भी तो किसी को नहीं पता
तब यह सब चक्कर छोड़
वास्तविक बनने की कोशिश करें
जो सत्य है वह है
जैसे हैं वैसे हैं
स्वीकार करें
अपनी खामियों को
अपनी गलतियों को
जो हुआ सो हुआ
अब वास्तव के धरातल पर उतर आए
जितनी जल्दी हो सके उतना ही अच्छा

कभी तो रहमत कर

जिंदगी इम्तिहान लेती है
पर कभी-कभी थका देती है
कितनी परीक्षा
परीक्षा पर परीक्षा
साल पर साल
बस अब बस भी कर
अब तो सुकून से जीने दे
कब तक परेशान करेंगी
कब तक रूलाएगी
तेरी भी तो कुछ सीमा होगी
यह तो ज्यादती है
हम परीक्षा पर परीक्षा देते जाएं
तू कुछ न कुछ निकालती जा
तू तो नहीं थकती
परीक्षा देनेवाला अलबत्ता जरूर थक जाता है
मायूस हो जाता है
जीते जी मरणासन्न हो जाता है
तू भेदभाव बहुत करती है
किसी को आसानी से पास कर देती है
किसी को अक्सर नापास करती रहती है
इतना कठिन पेपर निकालती है
कि वह बेचारा बन जाता है
कोशिश करता है सुलझाने की
कुछ सुलझाता है
कुछ छोड़ देता है
कब तक ऐसा खेल खिलाएंगी
कभी तो रहमत कर

Friday, 23 October 2020

यह तो कोई जिंदगी नहीं हुई बाॅस

डर कर जीना
भी कोई जीना है
यह हुआ तो
वह हुआ तो
फिर क्या होगा ??
निभाएँ जा रहे हैं
बोझिल संबंधों को
पडोसियों को
सह कारियों को
जवाब नहीं देना है
मजाक उड़ता है तो उडने दो
कोई शरीर में छेद तो नहीं हो जाएंगा
शरीर में छेद हो न हो
मन अवश्य व्यथित होता है
सह लेंगे तो क्या हो जाएंगा
इसी में जिंदगी गुजर जाती है
छोड़ो यार
मारों गोली
अपनी मर्जी से जीओ
जहाँ खुला और स्वच्छ आकाश नहीं
उसकी छाया में तो दम घुट जाएंगा
अपने आप भर भरोसा रखो
ईश्वर पर भरोसा रखो
जबरदस्ती निभाना
गलत को भी स्वीकारना
हाँ में हाँ मिलाना
अपना जमीर को गिरवी रखना
हमेशा ऑख नीची रखना
यह तो कोई जिंदगी नहीं हुई बाॅस

Thursday, 22 October 2020

आओ शब्दों से खेले

शब्द अपने आप में विस्तृत है
यह अर्थ है
यह कलह है
यह सांत्वना है
यह आज्ञा है
यह वजनी है
यह अक्षय है
यह निशब्द है
यह निराला है
इसमें तोड़ने और मोडने की शक्ति है
दूर और पास लाने की शक्ति है
यह वह जादूगर है
जो किसी को भी अपना बना सकता है
युद्ध करा सकता है
अलगाव करा सकता है
इसकी महिमा न्यारी
जिसने इसकी महत्ता समझ ली
वह कभी नहीं हार सकता
जब वाणी का जादू चलता है
तब बडे बडे भी वश में हो जाते हैं
यह सबसे बडा वरदान प्राप्त
वह भी केवल मानव को
हाँ उसको इससे खेलना आना चाहिए
तब तो उसकी जीत निश्चित है
आओ शब्दों से खेले
अंजानो को भी अपना बनाए

यही है इस खुशी की नियति

माँ ने बडे प्यार से नाम रखा था खुशी
खुशी की किस्मत ऐसी
कभी न मिल पाई खुशी
बचपन तो खैर बीत गया
ऐसे तैसे
गरीब का बचपन भी कोई बचपन होता है
जवानी की दहलीज पर कदम रखा
खूबसूरत तो थी उस पर जवान
लोगों की नजरों पर चढने लगी
भेड़िए घात लगाए बैठे रहते
कब मिले कब लीले
कब तक बचती और बचाती
आखिर फंस ही गई जाल में
अब बैठी है अंधेरी कोठरी में
जीवन में अंधेरा ही अंधेरा
शाम को बिजली चमचमाते ही आ जाती है बाहर
ग्राहको को खुश करना काम है उसका
पर वह खुश न हो पाई
पेट है
जीना है
गुजर बसर करना है
अब यह तंग बदनाम गलियां ही उसका नया ठिकाना
झोपड़ी से उठकर कोठरी में
इससे ज्यादा कुछ नहीं
चेहरे पर मुस्कान ओढे
अंदर से सहमा सहमा
यही है इस खुशी की नियति

संबंध बराबरी वालों से करो

यह तो कोई बात नहीं
हम हाथ जोड़े तुम मुंह फेरो
हम झुक जाएं तुम तन जाओ
हम मीठा बोले तुम व्यंग करो
हम आदर दे तुम अपमान करो
हम अपनापन जताए तुम परायापन
हम एहसास दिलाएँ
तुम उन एहसासों की धज्जियां उडाओ
हम तुम्हें ऊपर उठाए
तुम बात बात में नीचा दिखाओ
हम तुम्हारी प्रशंसा करे
तुम बुराई निकालो
उसके बाद एहसान जताओ
हमारे लिए कुछ करने का
ऐसे निर्लज्ज तो हम भी नहीं
ऐसे एहसान से न कुछ करें
गलती तुम करों
निकालो हमारी
हो सकता है
हममें कुछ खामी हो
परिपूर्ण तो तुम भी नहीं
अपने भी गिरेबान में झांक कर देखें
अगर हमें आपकी जरूरत तो
आपको भी हमारी जरूरत
वह भले समझ में नहीं आए
पर वास्तविकता तो यही है
नहीं तो कोई बिना स्वार्थ के इस स्वार्थी दुनिया में संबंध नहीं निभाता
और जो संबंध विवश हो
वह संबंध नहीं मजबूरी है
वह आपकी हो या हमारी हो
तभी तो कहा गया है
संबंध बराबरी वालों से करो

Wednesday, 21 October 2020

मिलने जुलने पर पाबंदी

सूचना देकर जाना किसी के घर
नहीं तो उनकी प्राइवेसी खंडित हो जाएंगी
यह एक नया कांसेप्ट आया है समाज में
एक समय था कि हमारे घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते
सोचना नहीं पडता था
जो भी आता उसका दिल से स्वागत किया जाता
आवभगत की जाती
पकवान न सही चाय ही सही पानी ही सही
वह प्रेम से पिलाया जाता
किसी की स्वतंत्रता का हनन नहीं होता
अरे यहाँ से गुजर रहे थे आ गए
जवाब मिलता था
आपका अपना ही घर है जब चाहे आ जाओ
अब तो अपनों को भी इत्तला देने का जमाना है
जज्बा तो कहीं पीछे छूट गया है
अब तो देखना पडता है
सुबह  । दोपहर ।शाम
कौन सा वक्त सही रहेंगा
ताकि उन लोगों को परेशानी न हो
माना कि हर व्यक्ति व्यस्त है फिर भी
घर आया मेहमान आज भगवान नहीं बोझ समान है
लोग कन्नी  काट रहे हैं
रिसोर्ट में समय बिता लेंगे अंजानो के साथ
पर अपनों के साथ नहीं
सब कुछ दिखावटी और औपचारिक
यहाँ तक कि रिश्ते भी
निभाना मजबूरी है नहीं तो कौन पूछता
तब घर भरा रहता था आगंतुकों से
और कोई न सही पडोसी ही सही
पर आज वह भी नहीं झांकता
शायद वह भी डरता है
हिचकता है
रिश्तेदार  की तो बात छोड़िए
जब कोई आपको पहले से इत्तला दे
उस दिन शायद वह न आ सके
आपकी तैयारी और समय दोनों व्यर्थ
तब आप उसको ही कोसेंगे
ऐसी जहमत कौन पाले
आप अपने घर हम अपने घर
मिल लिया ओकेजन पर
औपचारिकता निभा ली
ऐसे में दिल नहीं मिलता है
वह भी यंत्रचलित सा हो जाता है
इतनी पाबंदियां तब रिश्तों में मिठास कहाँ से

ऑसू मत रोके

यह ऑसू भी अजीब है
कभी भी निकल पडते हैं
खुशी हो तब भी
दुख हो तब भी
परेशानी हो तब भी
अकेलापन हो तब भी
यह हमेशा साथ रहते हैं
जब शब्द असमर्थ हो जाते हैं
तब ऑसू काम आते हैं
सबके सामने भी
अकेले में भी
दिन में भी
सुनसान रात में भी
यह दोनों ऑख से बहते हैं
बराबर ही
यह न हो तो तब क्या होता
यह जब बहते हैं
तब कुछ सुकून तो मिलता ही है
कुछ ही पल के लिए
इनको रोकना नहीं
रोना शर्म की बात नहीं
आपकी भावना को दर्शाता है
आपके पास एक दिल है
अपने ऑसू को मरने मत दीजिए
नहीं तो आप पत्थर हो जाएंगे
छूट दे भरपूर
जब दिल भर आए
रो ले जी भर कर
यही तो है
आपके सुख दुःख के साझीदार
ऑसू मत रोके बह जाने दे

किसी एक का चुनाव

यह भी
वह भी
क्या करें फिर भी
दोनों में उलझा रहे
इस तरह तो जीवन बन जाएगा जंजाल
निर्णय तो करना है
एक को तो छोड़ना है
झूला नहीं है
जो बीच में झूलते रहे
बाद में पछताए
कहीं का नहीं रहा
धोबी का कुत्ता
न घर का न घाट का
मन बनाना है
चुनाव करना है
जो होगा सो देखा जाएंगा
गधा बनें या शेर
पर कुत्ते की गति तो नहीं
अपना अस्तित्व बचाना है
स्वयं को साबित करना होगा
तब तो यह और वह में से
किसी एक का चुनाव करना होगा

Tuesday, 20 October 2020

घर और बाहर

आप परेशान हैं
बाहर आपकी छवि कुछ घर में कुछ
यह दोतरफा
कुछ समझ नहीं आता
असमंजस में रहता है शख्स
मैं यह हूँ
या वह हूँ
घर में बिल्ली बाहर चूहा
कैसा है यह खेल निराला
ऑख मिचौली खेलते खेलते जिंदगी खत्म होने के कगार पर
आप तब तक गफलत में
घर में चुड़ैल और नागिन
बाहर मीठी मीठी कोयल
तब असलियत क्या है
यह छवि क्यों है
इसको बनाया किसने
इस मिथक को तोडो
गलतफहमी को दूर करों
आप तो वही  है
जो घर में या बाहर में
घर और बाहर के बीच फंसा
अपनों और परायो का फर्क  न समझा
तब भी साथ निभाता
अपना फर्ज निभाता
कभी अपनी नजरों में गिरता
कभी दूसरों की नजरों में
अपनी इज्जत
अपना सम्मान
अपने हाथों
फिर वह घर हो या बाहर

Monday, 19 October 2020

बेटी और बेटा

घी का लड्डू गोल न हो टेढा ही सही
बेटा कैसा भी हो
काला नाटा मोटा
तब भी बेटा ही है
अनमोल है
तब बेटी क्यों नहीं ??
इन सबसे ज्यादा गुण मायने रखता है
रंग और बनावट नहीं
खूबसूरती को देखने का नजरिया होना चाहिए
बेटे के लिए तो कहा जाता है
राम और कृष्ण भी सांवले थे
बेटी से फिर वह अपेक्षा क्यों ??
वह नकुसा क्यों
अनवान्टेड क्यों
संतान तो संतान होती है
जैसी भी हो प्यारी होती है
उसको दोयम दर्जा क्यों ??
उसे एहसास होना चाहिए
वह अपने परिवार के लिए अनमोल है
उसका अस्तित्व महत्त्वपूर्ण है
लोगों की सोच कुछ भी हो
माता-पिता की सोच ऐसी न हो
उसे हेय न समझा जाए
अपने जिगर के टुकड़े को हीरा समझे
कोयला नहीं
उसको चमकने का मौका दें
सांवले और कालापन के सोच की आग में जलने न दे
आत्मविश्वास से भरपूर ऐसा सशक्त व्यक्ति बनाएं
कि सारी खूबसूरती उसके सामने पानी भरे
दूर से देख ईर्ष्या करें
उसके जैसे बनने की कोशिश करें

The Law of Wasted Effort

The Law of Wasted Effort

Do you know that lions only succeed in a quarter of their hunting attempts — which means they fail in 75% of their attempts and succeeds in only 25% of them.

Despite this small percentage shared by most predators, they don't despair in their pursuit and hunting attempts.

The main reason for this is not because of hunger as some might think but it is the understanding of the “Law of Wasted Efforts” that have been instinctively built into animals, a law in which nature is governed.

Half of the eggs of fishes are eaten... half of the baby bears die before puberty... most of the world's rains fall in oceans... and most of the seeds of trees are eaten by birds.

Scientists have found that animals, trees, and other forces of nature are more receptive to the law of "wasted efforts".

Only humans think that the lack of success in a few attempts is failure... but the truth is that: we only fail when we "stop trying".

Success is not to have a life free of pitfalls and falls... but success is to walk over your mistakes and go beyond every stage where your efforts were wasted looking forward to the next stage.

If there is a word that summarizes this world, it will simply be: continue all over again.

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डर डर कर जीना भी कोई जीना है

आसमान से गिरा खजूर पर अटका
भई गति सांप छछूंदर की
एक ओर कुऑ एक ओर खाई
यह तो मुहावरे हैं
मजबूरी दर्शाते हैं
न निगलते बनता है न उगलते
जीवन भर इसी असमंजस में पडा रहता है व्यक्ति
कोई निर्णय नहीं ले पाता
एक बार गिर कर ही देख लो कुएँ या खाई में
क्या जाने निकल ही लोगे
खजूर पर मत अटको
सीधे धडाम से जमीन पर गिरो
क्या होगा ज्यादा से ज्यादा जान जाएंगी
सलामत रहे तो हाथ पैर सर फूटेंगे
तो फूटने दो
जो करना है कर लो
जो कदम उठाना है उठा लो
डर डर कर जीना
इसका उसका सोचना
भविष्य की चिंता
कोई फायदा नहीं
आपके हाथ में केवल निर्णय लेना है
परिणाम भुगतने को तैयार रहो
अच्छा भी हो सकता है
किसने देखा है
सही कहा है किसी ने
डर डर कर जीना भी कोई जीना है

रिश्ता कब तक ??

एक कील उभर आई थी चेहरे पर
जब हाथ लगाती तब हाथ उसी पर जाता
टोच रही थी
चुभ रही थी
पीली पीली हो गई थी
मवाद भर गया था
न जाने कितने दिनों से परेशान कर रही थी
अब तक फोडा नहीं कि दाग पड जाएंगा
आज अचानक हिम्मत कर उसे दबा दिया
फूट कर बह गई
अब थोड़ा निशान तो रह ही जाएंगा
कोई बात नहीं
उस टुचन से तो छुटकारा मिला

यही बात रिश्ते में भी होती है
कभी-कभी वह तकलीफ देने लगता है
आपकी कदर कम होने लगती है
जब तक संभाल सको तब तक संभाल लो
नहीं तो छोड़ दो
अपने जीवन का फोडा मत बनने दो
जबरदस्ती बेमन से निभाना
यह तो जीवन को परेशान कर देंगे
निकल जाइए तभी ठीक होगा
समय रहते घाव को नहीं फोडा
तब वह नासूर बन जाएंगा