आजकल साहित्य कारों ने अपना पुरस्कार लौटाना शुरू किया है और यह क्रम जारी है
नेता बयानबाजी कर रहे हैं
१९८४ के दंगों का भी जिक्र हो रहा है
गोधरा का भी जिक्र हो रहा है
जनता और मुक्तभोगी जो भुल चुके है उसको फिर कुरेद कुरेद कर ताजा किया जा रहा है
भुगतना तो लोगों को पडेगा
ये लोग तो आग में घी डालने का काम कर रहे हैं
आज की समस्या को छोडकर बीती बातों को लाकर भावनाओं को आहत करना
शान्ति और सद्भभावना की इस समय जरूरत है
छोटी सी बात का भी बडा बवंडर बनाया जा रहा है
समस्या को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए न कि
नई नई समस्या का निर्माण
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Wednesday, 4 November 2015
दंगा ,दंगा होता है बडा या छोटा नहीं
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