एक नेता के जीत का जश्न मनाया जा रहा था जिससे एक आठ वर्ष के मासूम की जान चली गई
वैसे देखा जाय तो यह पहली घटना नहीं है
इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी है
कभी शादी समारोह में तो कभी जीत के जश्न में
बंदूक रखना और चलाना वीरता का प्रतीक माना जाता है जैसे हम कोई आदम युग में रह रहे हो
उत्तर भारत में तो बंदूक लेकर बाइक पर पीछे बैठा हुआ दृश्य आम बात है
बाहुबलियों के साथ बंदुकधारी दिखना तो आम बात है
गॉधी के अहिंसा के देश मे कब तक यह चलेगा
आज अखिलेश सरकार कटघरे में है क्योंकि उनकी ही पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं से यह अपराध हुआ है
अखिलेश नौजवान नेता है तो उनकी सोच भी नई होनी चाहिए
यह जश्न के नाम पर जो बंदूक का खेल चलता है उसको खत्म करना चाहिए
बंदूक लेकर आने जाने और समारोह में उपयोग पर पांबदी लगाने की जरूरत है
बंदूक शान का प्रतीक न होकर सुरक्षा के लिए होना चाहिए
जो भी इस घटना के दोषी है उस पर कडी कारवाई हो
एक बच्चे की जान गई है उसके माता पिता पर क्या बीत रही होगी
फिर ऐसा हादसा न हो इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है
कानून का भी एक अपना वजूद है यह इन बाहुबलियों को याद दिलाने की जरूरत है
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Wednesday, 10 February 2016
जश्न और खुशी कब तक बंदूक की गोली से
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