दाल - दाल - दाल
आजकल यह चर्चा आम
अमीर हो या गरीब सब पर पड रही मार
कौन सी दाल खाए ,तेरे प्रकार अनेक
अरहर ,मूंग ,चना ,मसूर या राजमा
सबने बिगाड दिया है हाजमा
इतनी मंहगी कि हजम होना दुस्वार
दाल- रोटी खाओ ,प्रभु के गुण गाओ को छोडो
अब तो भजो दाल - दाल
झोपडी से लेकर सत्ता के गलियारे तक तेरा ही नाम
तेरे भाईबन्द सब्जी भी हो गई मुहाल
सबने जीना कर दिया हराम
आम आदमी तो वैसे ही परेशान
उस पर तो दुहरी पड गई मार
न जाने कितने उपाय कर रही सरकार
पर फिर भी हो गया सब बेकार
दाम तो कम होने का नाम न ले रही
मंहगाई वैसे ही बरकरार
सब हो गये मजबूर
क्या खाए क्या न खाए
सोच में डूबी जनता
अब तो हद हो गई ,कुछ तो करो सरकार
दाल रानी सबकी प्यारी
हर थाली की रखती शान
फिर बन जाओ सबकी दुलारी
सब करते हैं इंतजार
शादी - ब्याह हो या समारोह
शाकाहार हो या मॉसाहार ,तुम्हारे बिना भोजन निस्वाद
पीली - लाल - काली के हर लोग दीवाने
तुम तो हो गोल - गोल
मत बोलो मंहगाई के बोल
आ जाओ बन कर बहार
तुमसे है आशा अपरंपार
हे दाल ,हे दाल ,हाय दाल
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