डंडी और बिंदी ,उसके बिना नहीं हिन्दी
बडी और छोटी मात्राओं का खेल खेलती
मेरी मॉ को कब मरी मॉ बना दे यह डंडी
मैं को कब मे मे कर बुलवा दे बकरी की भॉति
ड और ढ का फर्क
कब पढा से पडा बना गिरा दे
दिया और दीया , दीन और दिन का खेल रचा दे
क ख ग घ से अ आ इ ई तक के खेल निराले
बोलने पर तो बात ही मत पूछो
मद्रासी के मुँह से बोले तो खाना का काना हो जाय
वृक्ष का मतलब ही बदल देता ृ निकलकर
र की महिमा न्यारी
ऊपर ,नीचे और जोडाक्षर
त को भी त्र कर देता र
कहते हैं बहुत सरल है हिन्दी
पर इसकी चाल है उल्टी
नहीं पकड में आती है ,बच्चों को हो जाती परेशानी
पेपर लिखते समय खुश हो जाते
पर अंकों को देख मुँह लटक जाते
फिर भी लगती सरल और सबको प्यारी
कुछ भी बोलो ,कैसे भी बोलो
सबको समझ में आ जाती
पूरी नहीं तो टूटी - फूटी ही सही
दिलों को जोडती ,प्यार बॉटती
जब मिले अजनबी और कुछ समझ न आए
तब साथ निभाती हिन्दी
सबको अपने में समाती
ऐसी हमारी प्यारी हिन्दी
जैसे भारत माता के माथे पर हो बिन्दी
जय हिन्दी - जय हिन्दूस्तान
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Friday, 19 August 2016
यह हमारी प्यारी हिन्दी
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