Thursday, 20 October 2016

कोहरे को तो जाना ही है

घना कोहरा छाया हुआ
कुछ दिखाई नहीं दे रहा
दूर क्या पास का भी नहीं
क्या करें ,कैसे करें
मुश्किल में पड गया है जीवन
राह लंबी है ,आसान भी नहीं
बहुत से रोडे पडे हैं
उनको हटाना है ,रास्ता ढूढना है
इस धुंधलके को चीर आगे बढना है
यह कैसे संभव होगा
अचानक रोशनी कौंधी मन में
एक - एक कदम आगे बढे
धुंधलका अपने आप छटता जाएगा
राह अपने - आप निकलता जाएगा
क्या पता किसी दिन यह कोहरा पूरी तरह छट जाए
मंजिल प्राप्त हो जाय
कोहरा हमेशा कायम तो नहीं रहता
पर उसे तो छटना ही है
राह से हटना ही है
किसी में इतनी ताकत नहीं कि प्रकाश को रोक दे
कुछ समय के लिए हो सकता है पर हमेशा के लिए नहीं
हर रात की सुबह होती है
हर अंधेरे को समाप्त होना है
हर कुहासे को छटना भी जो है
क्योंकि जिंदगी को आगे जो बढना है

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