Thursday, 10 November 2016

गुल्लक बना सहारा

छोटा सा गुल्लक मेरा
प्यारा- प्यारा ,सबसे न्यारा
जब भी मिलता पैसा
मैं डाल देता इसमें
कोई रिस्तेदार घर पर  आता
कुछ पैसे दे जाता ,मैं खुश हो जाता
त्योहार की भी प्रतीक्षा रहती
कुछ न कुछ मिलता
मुझे हमेशा अफसोस होता
कोई पॉच- सौ और हजार नहीं देता
पॉच,दस ,और ज्यादा से ज्यादा सौ के नोट
हॉ छुट्टे पैसे बहुत मिल जाते
दूध वाला बाकी पैसे लौटा देता
या लांड्री वाला या सब्जी वाला
मम्मी पैसे दे देती ,उसमें डालने के लिए
मैं हमेशा ताक में रहता
कि कब मिले और हम पिगी बैग में डाले
जब भर जाता तो इसको खोल निकाल कर बडे में बदल देता और अपनी मनपसन्द चीज खरिद लेता
पर आज मेरी गुल्लक का महत्तव समझ आ रहा है
सब मुझसे मॉग रहे हैं
पैसा नहीं है मम्मी को रोजमर्रा का सामान खरिदना है
कोई पॉच सौ और हजार के नहीं ले रहा
मेरा गुल्लक भरा है
सबकी उस पर नजर है
पर आज मैं सबकी सहायता करूंगा
और सबके चेहरे गुलजार करूंगा
आखिर मेरा गुल्लक ही इस समय सहारा है
है छोटा पर आज बन गया बडा

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