Monday, 7 November 2016

क्योंकि मैं एक लडकी हूँ

कभी- कभी मन करता है
मेरे आसपास कोई न हो
मैं स्वतंत्र रहूँ
अपनी मर्जी से जो चाहे सो करू
किसी की टोका टोकी न हो
जब चाहे उठू ,जब तक चाहे सोउ
जब चाहे खाउ ,जब चाहे नहाउ
रोज वही सुबह की क्रियाकलाप
मन उब गया है
खिडकी पर खडी हो चाय की चुस्कियॉ लू
घूमने निकल जाउ
जब मन हो घर आउ
दोस्तों के साथ मौज मस्ती करूं
किसी की परवाह न करू
मेरा जीवन है मैं अपनी तरह से जीऊ
क्या करना है ,क्या नहीं करना है
वह निर्णय मेरा हो
कोई मुझ पर बंधन न हो
कोई घर की जिम्मेदारी न हो
कोई मुझसे अपेक्षा न हो
पर यह हो नहीं सकता
जीवन मेरा पर तय करने वाले दूसरे
हर बात पर बंधन
उठने- बैठने ,खाने- पीने से लेकर
आने- जाने के समय तक
क्योंकि मैं एक लडकी हूँ
मैं देर रात तक बाहर घूम नहीं सकती
सुबह देर तक सो नहीं सकती
घर का काम करने की भी मुझसे अपेक्षा है
लडका यह सब कर सकता है
जब चाहे तब तक सोए
जब चाहे उठे
घूमे,रात को देर से घर आए
कोई घर के काम में हाथ न बटाएं
पर चलेगा क्योंकि
वह लडका है और मैं एक लडकी हूँ

कहीं आशिफा या निर्भया न बना दी जाऊ

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