आज मैं दूसरे शहर में आ कर रह रहा हूँ
अकेला हूँ और अभी कुछ ही महीने हुए हैं
मॉ की बहुत याद आ रही है
अब स्वतंत्र हूँ और अपनी मन मर्जी का मालिक हूँ
कमा भी रहा हूँ
पैसे की कमी नहीं है
कोई टोकाटोकी नहीं
बाहर खाउ या घर पर
देर तक सोउ या लेट रात को घर लौटू
फिर भी मन नहीं लग रहा है
घर की याद आ रही है
वह मम्मी का बार- बार डाटना
सुबह देर तक सोने पर पंखा बंद कर देना
ताकि मैं उठ जाउ
देर से घर लौटने पर गुस्सा होना
पेट भरा होने पर भी मम्मी के डर से कुछ तो खा लेना
एक - एक पैसे का हिसाब लेना
जेब खर्च के लिए रोज विवाद करना
पढने के लिए टोकना
जैसे मुझे अभी भी बच्चा समझती हो
मैं इंजीनियर और मॉ के लिए बच्चा
बहुत कोफ्त होती थी
पर आज दूसरे शहर में हूँ
समय पर घर आता हूँ
दूसरे दिन ऑफिस जाना है
रात को जल्दी सो जाता हूँ
होटल का खाना खाकर थक गया हूँ
इसलिए अब कभी- कभी खुद बना कर खाता हूँ
कपडे घोता हूँ
पहले तो नहाकर बाहर निकल आता था
कपडे वैसे ही छोडकर, धोना- सुखाना मम्मी के जिम्मे
कभी- कभी पैसा भी जेब में रखकर भूल जाता था
अब पैसे का भी हिसाब रखता हूँ
खुद कमा जो रहा हूँ
वह दिन लद गए
आराम के और मौज- मस्ती के
दोस्तों के साथ घूमने के
बस याद रह गई है
और मम्मी की याद तो हमेशा आती है
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