Saturday, 14 January 2017

पंतग की चाहत

हर पतंग उडना चाहती है
पेच लडाना चाहती है
आगे बढना चाहती है
प्रतिस्पर्धा और होड में लगी रहती है
काटकर आगे बढना चाहती है
किसी तरह रास्ता निकालकर आगे बढती है
सारी बाधाओं को पारकर आसमान छूना चाहती है
यह नही पता कि कब कटेगी
कहॉ गिरेगी
यह भी जानती है कि गिरकर कूडे में ही पहुँचेगी
पर फिर भी प्रयत्न शील है
उडान भर रही है
कोई कसर बाकी नहीं छोड रही है.
जिंदगी भी तो यही सिखाती है

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