Sunday, 29 January 2017

कबूतर और चींटी

आज फिर चींटी तालाब में गिर पडी
पर जीने की आस नहीं छोडी
इंतजार कर रही थी पत्ते का और कबूतर का
कबूतर को पेड पर देख पुकारने लगी
कबूतर ने भी देखा पर इस बार पत्ता नहीं गिराया
मैं ही क्यों हमेशा इसे बचाउ
चींटी असहाय हो बह चली
और कबूतर देखता रहा
इसी समय शिकारी ने लक्ष्य कर निशाना साधा
कबूतर के भी प्राण निकल गए
बच गया पेड
सोचने लगा ऐसा क्यों हुआ
खूब रोया
वह तो दोनों को जीवित देखना चाहता था
पर यहॉ परोपकार की भावना खत्म हो गई थी
अंत तो होना ही था
स्वार्थ जब घर कर लेता है तो विनाश तो निश्चित है
यही हाल इन दोनों के साथ हुआ

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