Sunday, 9 July 2017

गुरू हो गुरूर नहीं

जीवन ज्ञान बिना अधूरा है
बिना गुरू ज्ञान कहॉ
ज्ञान ही आत्मा को परमात्मा से मिलन कराती है
सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाती है
जीवन के सही मायने समझाती है
जीवन जीना सिखाती है
हम पल- पल सीखते हैं
कुछ अनुभव सिखाता है कुछ विद्यालय
जन्म लेते ही सीखना शुऱु हो जाता है
रेंगने ,बैठने और चलने से शुरूवात
गिरते हैं ,उठते हैं ,ठोकर खाते है
असफल होते हैं
जीवन ही अपने - आप में सबसे बडी पाठशाला है
बचपन ,यौवन ,बुढापे से लेकर मृत्यु पर्यंत
यह अनवरत सिखाती रहती है
न जाने कितने गुरूओं के माध्यम से
मॉ से लेकर प्रकृति का हर कण- कण
हॉ,सीखना हमें है पूर्ण समर्पण भाव से
जिसने समझ लिया कि वह परिपूर्ण हो गया
विकासगति वहीं रूक गई
आजीवन बालसुलभ उत्सुकता के साथ सीखना है
गुरू को समझना है ,उनका सम्मान करना है
गुरूता को नमन और गुरूर का त्याग
यही व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य
जीवन को सार्थक बनाना है तो सीखना भी है
अमल भी करना है
हर उस गुरु का शुक्रिया अदा करना है
जिसने जीवन को जीवन बनाया
अच्छे- बुरे का भेद समझाया
असफलता को सफलता में बदलने का गुर सिखाया
पशु से मानव बनाया
मानवता और इंसानियत का पाठ पढाया
स्वावलंबी और आत्मसम्मान से जीना सिखाया
      गुरू बिना ज्ञान नहीं
      ज्ञान बिना आत्मा नहीं

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