Monday, 12 November 2018

मां गंगा

भारत ही गंगा बिना अधूरा
भारत का इतिहास बिना गंगा के हो ही नहीं सकता
राजा भगीरथ पृथ्वी पर तपस्या कर लाए थे
तब से भागीरथी निरंतर कल्याण कर रही है
जल देकर अविरत बहती हुई
शिव की जटा से निकली
आज जटिल बना दी गई है
बडे बड़े नगर इसके तट पर बसे
गंगोत्री से निकल स्वच्छ निर्मल विचरण करती
जब आगे बढ़ने लगती है
वैसे वैसे दूषित होती जाती है
कलकत्ता पहुंच कर बंगाल की खाड़ी मे जब गिरती है
तब तक तो बहुत बदलाव आ चुका होता है
जीवनदायिनी है मां गंगा
पर हम उसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं
स्वयं के पाप धो रहे हैं
वह कितना क्षमा करेगी
हम स्वयं बदल नहीं सकते
सारा कुछ उसी मे बहाते
कितना समाएगी
वह सागर भी नहीं है कि बाहर फेंक दें
माता है वह
संतान की हर गलती को समा लेती है
पर कब तक
जब तक उसकी क्षमता है  तब तक
कहीं ऐसा न हो जाय
मां हमसे रूठ जाय
तब तो भगीरथ का उद्देश्य
मां गंगा को पृथ्वी पर लाना
असफल हो जाएगा
आज उनकी अहमियत को समझना होगा
नहीं तो विनाशकारी परिणाम होगे
भविष्य अगर अच्छा करना है
तो मां गंगा का सम्मान करना है
उन्हें पवित्र और निर्मल रखना है
तभी सारी मानव जाति का कल्याण होगा
अगर गंगा नहीं तो भारत भी नहीं
शिव की काशी महादेव भी इसी के तट पर
तुलसी-कबीर की रचनाओं का संसार भी यही
संत महात्माओं की भूमि
हम मां के ऋणी हैं
और उस ऋण को चुकाना है
बस उसे स्वच्छ रखना है
मां ऐसे ही सदियों बहे
आने वाली पीढियों को भी आशिर्वाद देती रहे
... नमामि गंगे ....

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