Thursday, 6 December 2018

प्रेम ही आधार

प्रेम ही आधार
बाकी सब निराधार
प्रेम की कोई भाषा नहीं
परिभाषा नहीं
मान -अपमान नहीं
प्रेम की कोई सीमा नहीं
प्रेम की कोई गिनती नहीं
प्रेम मे कोई नाप -तोल नहीं
यह तो निस्वार्थ है
प्रेम के रूप भले ही अलग
पर उसका रंग एक ही
वह सर चढ़कर बोलता है
जिससे प्रेम होता है
वह सबसे बहुमूल्य
फिर वह मां का प्रेम हो
पति -पत्नी का हो
प्रेमी -प्रेमिका का हो
भाई -बहन का हो
दोस्ती का हो
हर रिश्ता अनमोल
क्योंकि इसके बीच प्रेम घूमड़ रहा है
बिना प्रेम के जीवन नीरस
भक्त और भगवान का प्रेम
बिना देखे और सुने
सब कुछ अर्पण कर दिया
क्योंकि देने वाला ही वह
हमारा क्या
जो करेंगा वह करेगा
इस अटूट विश्वास का कारण भी प्रेम
हम रोज फरमाइश करते हैं
उसे कोसते भी हैं
फिर भी वह हमारे साथ हमेशा रहता है
दुख और विपत्ति मे वही याद आता है
क्योंकि वह परमपिता परमेश्वर हैं
जगत का मालिक
सारी सत्ता उसके हाथ मे
सृष्टि का संचालक
बस उससे प्रेम कर ले
स्वयं को सौंप दे
उस पर विश्वास रखे
विधाता जो भी करेगा
अच्छा ही करेगा
हम उससे प्रेम करते हैं
वह हमसे प्रेम करता है
वह हमारा अच्छा ही करेगा
क्योंकि प्रेम ही आधार है
प्रेम ही भगवान है
बाकी सब निराधार है

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