आज हवा कुछ उदास है
शांत है
विचलित है
न झूम रही न लहरा रही
न बह रही
न गतिमान
यह तो उसका स्वभाव नहीं
यह तो जीवनदायिनी
फिर भी परेशान
हो गई है लाचार
प्रदूषित हो रही है
जीवन लेने के लिए विवश हो रही है
खुद मर रही
लोगों को मार रही
बीमारू हो रही
बीमारियां फैला रही
इसमें मेरा दोष नहीं
जिनको मेरी जरूरत
जिनसे उनका जीवन
जिनसे उनकी सांस
वही उसे जहरीला बना रहे
जान बूझ कर जहर ले रहे
मुझसे यह सहा नहीं जाता
कब यह सचेतेगे
कब इन्हें समझ मे आएगा
अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी चलाना
कब छोड़ेगे
कब तक मैं इनका साथ निभाऊंगी
अपने भी मरेंगे
मुझे भी मारेंगे
अभी तो शुरुआत है
तिल तिल मर रहे
बाद मे विस्फोटक हो जाएगा
यह मानव कब समझ पाएगा
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Thursday, 6 December 2018
आज हवा उदास है
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