सीता एक स्वतंत्र व्यक्तित्व
कोई बंधन स्वीकार नहीं
अयोध्या मे रहना गंवारा नहीं
एक कुलवधू बनकर नहीं
सहचरी बनने को तैयार
कुटिया मे रहना
स्वावलंबी बनना
लक्ष्मण रेखा से बाहर आना
रावण के महल मे रहने से अस्वीकार
हनुमान के माध्यम से संदेश देना
रावण पर चढ़ाई करके ले जाय
अग्नि परीक्षा देना
सारे समाज को मुंहतोड़ जवाब देना
महल मे वापस आना
वनगमन करना
अब वापस अयोध्या आने से इन्कार करना
यह फैसला उनका था
उन्होंने राम का सहारा नहीं लिया
राम से वरदान नहीं मांगे
मजबूर नहीं किया
हर निर्णय उनका था
शिवधनुष उठाने वाली जानकी सुकुमार राजकुमारी नहीं
एक मजबूत नारी थी
विद्रोहिणी थी
समझौता स्वीकार नहीं था
पहली महिला थी जिसने परम्पराओं को तोड़ा
सीता अगर अड़ जाती
तब राम आदर्श राजा नहीं बनते
न मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाते
वह भी कैकेयी की तरह हठ कर सकती थीं
पर यह उन्होंने किया नहीं
पर राजमहल मे रही भी नहीं
वनगमन किया पति के साथ
रावण के प्रलोभनों के आगे झुकी नहीं
आत्महत्या भी नहीं की
अयोध्या मे भी सर उठाकर और सम्मान के साथ प्रवेश किया
पर जब राम पर बन आई
तब वन को प्रस्थान कर लिया
लव -कुश की मां बनी
अयोध्या को भावी राजकुमार दिया
अपनी हर जिम्मेदारी बखूबी निभाई
अपने असतित्व को कायम रखा
नारी की अस्मिता को बरकरार रखा
बिना बोले चुपचाप अपने हर कर्तव्य का पालन किया
राम तो सीता के बिना अधूरे थे
मूर्ति के साथ पूजा की
सीता को उसकी जरूरत नहीं पड़ी
उनके तो दिल मे राम का निवास था
वह तो मिथिला से चली थी
उसी समय से राम की हो गई थी
पग -पग पर साथ दिया था
सीता नहीं होती तब शायद राम आदर्श राजा भी नहीं होते
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Saturday, 13 April 2019
सीता और राम
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