बर्तन है तो खटकेगे ही
जहाँ चार लोग रहेंगे
वही तो आवाज आएगी
अकेले तो शांत ही रहेगा
जीवन तो लोगों से है
शांतता तो हिमालय की कंदराओं में ही संभव
पर वह जीवन भी इतना आसान नहीं
जंगली जानवर
पशु-पक्षियों की आवाज
किससे किससे भागते फिरेगे
सांसे भी धडकती रहती है
अकेला बर्तन ज्यादा कुछ नहीं कर सकता
उसे अपने साथियों की जरुरत रहती है
साथ में ही वह सार्थक बनता है
लोगों से कब तक भागा जाएगा
अपने बर्ताव मे परिवर्तन लाना है
घर है हिमालय की कंदरा नहीं
सबको साथ लेकर चलना है
सबके साथ चलना है
साथ चलने का मजा ही कुछ और है
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Wednesday, 12 June 2019
साथ चलने का मजा ही कुछ और है
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