झूला झूल रही थी
बालकनी में बैठे बैठे
लगा जीवन भी झूल रहा है
कभी ध्यान ही न दिया
कभी खुद पेंग मारी
कभी दूसरों ने मारा
कभी भाग्य ने मारा
अब तक झूल रही हूँ
स्थिर नहीं हुआ
कभी स्थिर होने की कगार पर आता है
अचानक कोई आंधी - तूफान आकर हिचकोले दे जाता है
हाॅ कभी-कभी खुशी भी महसूस हुई
गीत भी गुनगुनाए
वह क्षणिक था
एक झोंका आया
वह सब तहस नहस कर गया
फिर भी आज तक झूले पर बैठी हूँ
कस कर पकडी हूँ
कहीं गिर न पडू
हठी हूँ
इस तरह तो हारना
मेरी फितरत में नहीं
थोड़ा ठहर भले जाऊँ
पर झूलती रहूँगी
झूमती रहूँगी
झेलती रहूँगी
आखिर ठहराव तो जिंदगी नहीं
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Saturday, 8 June 2019
आखिर ठहराव तो जिंदगी नहीं
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