Wednesday, 9 October 2019

मेरे द्वार पर खडा नीम

मेरे द्वार पर खडा हमारा साथी
पता नहीं कितनी पीढियाँ जुड़ी इससे
याद है बाबा की चारपाई इसके नीचे
हुक्का फूकते और बतियाते
फिर पिताजी इसके नीचे ही बैठ
दफ्तर से लौट सुस्ताते
मै भी बचपन में पूरा दिन इसी की छाँव में भाई बहनों के साथ मटरगश्ती करते
सावन में झूला झूलती गाना गाती घर की महिलाएं
बीमारी में इसके पत्तों का इस्तेमाल
खेलते खेलते गिरने पर घुटने छिलने पर छाल घिस कर लगा लेना
सबेरा ही इसकी दातून से शुरू
हमेशा गुलजार
सुबह ,दोपहरी या सांझ
गर्मी में तो शीतल कर देता
बरखा में पानी से बचा देता
इसके नीचे खटिया पडी रहती
आज यह खटक रहा है
नया घर बनाना है
इसे हटाना पडेगा
रास्ते में रोडा बन गया है
पर केवल यही खत्म होगा
नहीं इसके साथ
पीढियों की यादें
पक्षियों का चहचहाना
छाया और शीतलता
बरखा ,गर्मी ,सावन सब चला जाएगा
यह नीम नहीं है
हमारा साथी है
तब भी इस वफादार दोस्त को बचा नहीं रहे
अपने ही हाथों खत्म करने पर उतारू है

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