मेरे द्वार पर खडा हमारा साथी
पता नहीं कितनी पीढियाँ जुड़ी इससे
याद है बाबा की चारपाई इसके नीचे
हुक्का फूकते और बतियाते
फिर पिताजी इसके नीचे ही बैठ
दफ्तर से लौट सुस्ताते
मै भी बचपन में पूरा दिन इसी की छाँव में भाई बहनों के साथ मटरगश्ती करते
सावन में झूला झूलती गाना गाती घर की महिलाएं
बीमारी में इसके पत्तों का इस्तेमाल
खेलते खेलते गिरने पर घुटने छिलने पर छाल घिस कर लगा लेना
सबेरा ही इसकी दातून से शुरू
हमेशा गुलजार
सुबह ,दोपहरी या सांझ
गर्मी में तो शीतल कर देता
बरखा में पानी से बचा देता
इसके नीचे खटिया पडी रहती
आज यह खटक रहा है
नया घर बनाना है
इसे हटाना पडेगा
रास्ते में रोडा बन गया है
पर केवल यही खत्म होगा
नहीं इसके साथ
पीढियों की यादें
पक्षियों का चहचहाना
छाया और शीतलता
बरखा ,गर्मी ,सावन सब चला जाएगा
यह नीम नहीं है
हमारा साथी है
तब भी इस वफादार दोस्त को बचा नहीं रहे
अपने ही हाथों खत्म करने पर उतारू है
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Wednesday, 9 October 2019
मेरे द्वार पर खडा नीम
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