एक ओंकार सतनाम श्री वाहेगुरु। 🙏
9 नवंबर 2019 का दिन इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज हो चुका है। 9 नवंबर 2019 को एक अद्भुत संयोग भी बना, एक तरफ जहां अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना रहा था वहीं दूसरी तरफ गुरुनानक देव जी की 550वीं जन्म जयंती के अवसर पर करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन हो रहा था।
पर क्या आप जानते है अयोध्या मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में सिक्ख गुरु गुरु नानक, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह और निहंग सिक्ख का जिक्र साक्ष्य के तौर पर किया गया और सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को इस साक्ष्य को मानते हुए अयोध्या केस में राम लला के पक्ष में निर्णय सुनाया।
अदालत के 1045 पन्नों के फैसले में एक गवाह के हवाले से यह कहा गया है कि सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक 1510 से 1511 के बीच अयोध्या आए थे और उन्होंने भगवान राम के दर्शन भी किए थे। जबकि बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 से 1530 के बीच हुआ था। सबूत के तौर पर कई जन्मसखी (गुरु नानक देव की जीवनी) भी पेश की गई, जिसमें उनके अयोध्या आने और राम जन्मभूमि के दर्शन की बात कही गई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल के फैसले में भी गवाहों के हवाले से कई जन्म सखी का जिक्र है। गवाहों ने इसे एफिडेविट के तौर पर कोर्ट में पेश किया।
इसके अनुसार कई किताबों से यह साफ है कि गुरु रामचंद्रजी और गुरु नानक देव ने अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर के दर्शन किए। यही नहीं गुरु तेग बहादुर और उनके बेटे गुरु गोविंद सिंह ने भी अयोध्या में दर्शन किए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 161 साल पहले अयोध्या में दर्ज एक केस का भी हवाला दिया है। जिसमें एक सिख द्वारा विवादित स्थल पर पूजा किए जाने का जिक्र भी है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पेज संख्या 799 में ‘मस्जिद परिसर से निहंग सिंह फकीर का सबूत’ नामक उप शीर्षक को दर्ज किया गया है। जिसमें लिखा है कि 28 नवंबर 1858 को अयोध्या के तत्कालीन थानेदार शीतल दुबे ने एक आवेदन दायर किया जिसमें कहा गया था कि पंजाब के रहने वाले निहंग सिंह फकीर खालसा ने मस्जिद परिसर के अंदर गुरु गोविंद सिंह के हवन और पूजा का आयोजन किया और परिसर के भीतर भगवान का प्रतीक बनाया। 30 नवंबर 1858 को बाबरी मस्जिद के मोअज्जिन सैयद मोहम्मद खतीब ने स्टेशन हाउस ऑफिसर के समक्ष केस संख्या 884 को दर्ज कराया। जिसमें कहा गया कि निहंग सिख द्वारा मस्जिद परिसर में स्थापित निशान को हटाया जाए। आवेदन में कहा गया है कि स्पष्ट रूप से जन्मस्थान का प्रतीक वहां था और हिंदुओं ने वहां पूजा की थी।
कई गवाहों के बयान, पक्षकारों की दलीलें, ऐतिहासिक साक्ष्य और कानूनी दस्तावेजों का परीक्षण करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक निर्णय देते हुए रामलला विराजमान को पूरी जमीन सौंप दी है।
जय श्री राम, धर्म की जय हुई।
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