Thursday, 21 May 2020

हम घर में बैठे परेशान

हम घर में बैठे परेशान
वे चल चल कर घर जाने के लिए परेशान
घर हमें काटने को दौड़ रहा है
उसी घर में सुकून पाने के लिए वे जा रहे हैं
हमें बाहर की हवा चाहिए
उन्हें अपना घर चाहिए
हमारे पास तो घर है
उनके पास तो इस समय वह भी मयस्सर नहीं
हम घर का खाना खाकर ऊब चुके
होटल और रेस्तरां की याद आ रही है
पिज्जा और बर्गर भी सपने में आ रहे हैं
वे घर का खाना खाने को तरस रहे हैं
कोई दो निवाला दे दे
इसका इंतजार कर रहे हैं
हम खा खाकर परेशान
वे भूख के मारे परेशान
हमें घर की चाय नहीं भाती
टपरी वाले की चाय का स्वाद नहीं आता
उन्हें चाय तो क्या
पानी भी मिल जाय वही बहुत
घर की और रोटी की कीमत
तब समझ आती है
जब बेघर होता है
भूखे मरता है
घर बनाना इतना आसान नहीं
दशकों लग जाते हैं
बसने में न जाने कितनी पीढियाँ
उजडने में वक्त भी नहीं लगता
जो लोग बेघर हो रहे हैं
उनकी पीड़ा का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता
तभी तो अपने सर पर गृहस्थी का बोझ उठाए चल रहे हैं
जितना समेट सकें वह समेट कर चल रहे हैं
बडी मेहनत से बनी बनाई गृहस्थी को उजाड़ कर चल रहे हैं
हम घर में बैठे परेशान
वे चल चल कर घर जाने के लिए परेशान

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