Tuesday, 19 May 2020

बहुत डर लगता है

दिन बीता
रात हुई
सोने की तैयारी
फिर सुबह उठना है
यही सोचना
दिन कैसे गुजरा
रात ठीक ढंग से बीते
एक डर मन में समाया
अंजान सा
घर बनाकर बैठ गया है
कब क्या हो
यह अनिश्चितता
कब तक डर के इस साये में जीए
कब तक यह कहर ढाएगा
यह करोना नाम का जीव कब जाएगा
रात दिन इसी  सोच में
हर इंसान
पूरी मानवजाति
करोना इस कगार पर लाकर खडा कर देगा
जिसका ओर छोर नजर नहीं आता
बंधक बना कर रख दिया है
होशोहवास उडा कर रख दिया है
नींद और चैन छीन ली है
बस इंतज़ार है
इसके कहर से मुक्त होने का
युद्ध से भी जितना डर नहीं
उससे ज्यादा इससे
अदृश्य है
वार करता है
सब खत्म कर देता है
अब तो डर लगता है
बहुत डर लगता है

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