Monday, 29 June 2020

दोस्ती तो होती थी

तब पैसे नहीं होते थे
इसलिए एक एक पैसे का हिसाब रखा जाता था
कल मैंने खिलाया था
आज तू खिला
कल मैंने तुझे पांच रूपये दिए थे
आज फिटूस कर
इतना ही पैसा है
चल आधा आधा खाते हैं
ऐसा कर एक आइटम तू ले
एक मैं
दोनों ही चख लेंगे
इतना ही जेब खर्च मिलता है
उसी में चलाना है
आज मैं नहीं आता
मन नहीं है
मन नहीं पैसे नहीं होते थे
तब भी खुश रहते थे
वह कटिंग की कटिंग चाय भी लाजवाब होती थी
वह थियेटर की सबसे आगे की रो भी भाती थी
पैसे बचाने के लिए चल लेते थे
फिर उसका ही बडा पाव टेस्ट ले लेकर खाते थे
सैंडविच वगैरह तो जेब पर भारी
वैसे भी सूखा सूखा
उसका क्या मजा
समोसा के अंदर का मसाला
फिर बाद में थोड़ा बचा हुआ कडक कोना
भेलपुरी और शेवपुरी के बाद बची हुई चटनी
चाट चाट कर खाना
पेप्सी की प्लास्टिक को भी चबा डालना
च्यूगम से फुग्गे फुलाना
घंटो इधर-उधर भटक कर घर आना
कभी-कभी चोरी से बंक मारना
फिर घर में नजरें चुराते हुए दाखिल होना
यह सब में एक अपना मजा
जिंदगी जीने का अपना अंदाज
दोस्ती तो होती थी
पर वह पैसे से नहीं
आज पैसा तो है
पर वह वाली बात कहाँ

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