Friday, 11 December 2020

बाप की बात

आज आपकी याद आ रही है
मन विचलित हो रहा था
घबरा रहा था
लगता है सब छोड़कर कहीं दूर चली जाऊं
मन ऊब गया है
यह सांसारिक प्रपंच में
हासिल कुछ नहीं
सिवाय आलोचना - प्रत्यालोचना के
मन खट्टा हो गया है
प्रयास करते करते उम्र यहाँ तक पहुंच गई

अचानक ऐसा क्यों ख्याल आया
आपने तो इतना कमजोर तो नहीं बनाया था
दीपावली में बम - फटाका लकडी में खोसकर चलाना सिखाया था
बाद में वही हाथ में लेकर जलाने लगी
आप हमेशा यह कहते थे
यह दुनिया रहने लायक नहीं है
महसूस होता है
आप ऐसा क्यों कहते थे
यहाँ लोगों को आदत है
अपने पाक साफ बना रहना
दूसरे के कंधे पर रखकर बंदूक चलाना
बंदिशो में हम जकड़े रहते हैं
अपनी जिंदगी जीना छोड़ दूसरों की जीते हैं

अब समय आ गया है
अपनी जिंदगी जीना
किसी को अच्छा लगें
किसी को खराब लगें
हमारी बला से
हम तो किसी का कुछ बुरा नहीं कर रहे हैं
आपका वह वाक्य
मुझे इस बात का सुकून है
मैंने जिंदगी में धोखा खाया है
किसी को धोखा नहीं दिया
अगर आग में हाथ डाला है तो जलेगा ही
कर्म जो करता है वही अच्छा - बुरा बनता है
बातें बनाने वाले तो बहुतेरे मिल जाएंगे
सही है बाप की बात
बाप की याद
भुलाएँ नहीं भूलती
वह बचपन से इतनी रची बसी है
मुसीबत में प्रकाश की किरण बन जाती है
असमंजस में रास्ता दिखा जाती है

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