Tuesday, 12 January 2021

हर साल यही तो होता है

अब कुछ सहन नहीं होता
वह आवाज जो पहले प्यारी लगती थी
वह लोग जिनकी चिंता रहती थी
वह परिवार जो अपना लगता था
कहते हैं
समय बहुत कुछ बदल देता है
सही भी है
बदलाव प्रकृति का नियम है
दोष किसी का नहीं
एक ही जैसा जीवन
वहीं लोग
वहीं बातें
एक समय पर नीरस लगता है
संबंधों में भी यही होता है
घर में भी यही होता है
पडोसियों के साथ भी यही होता है
कल के जिगरी आज फूटी ऑख नहीं सुहाते
सुनने में कुछ अजीब है
सत्य तो यही है
तभी नए-नए उपाय
नए-नए प्रयोजन
निरसता को दूर कर नयापन लाने के लिए
चलो फिर पहले जैसा प्रगाढ़ हो लेते हैं
जो बिखरा है साल भर में
उसे नए साल में जोड़ देते हैं
हर साल यही तो होता है

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