Tuesday, 12 January 2021

किताब की भावना

वह बाजार में खडी थी
नुमाईश लगी थी
किलों के भाव मिल रही थी
फिर भी कोई खरीदार नहीं था
जानते हो दोस्तों
वह कौन थी
वह किताब थी
न जाने कितनों की प्रेरणा थी
न जाने किसकी मेहनत थी
न जाने कितनी भावनाएं समाई थी
न जाने कितनी रातें जगाई थी
न जाने कितनी स्याही खर्ची थी
हाँ पर एक सच्चाई थी
वह पेट भरने का सामान नहीं थी
जेब में जब पैसे की तंगी हो
तब पहले पेट बाद में सब
अच्छा लगता है तब
जब भरा हो पेट
किस्से - कहानियों से पेट नहीं भरता
गरीब को पढना नहीं रास आता
यह सब चोंचले लगते अमीरों के हैं
यही तो किताब भी सोच रही है
वह सर्वसामान्य के काम आती
तब स्वधन्य हो जाती

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