यह दोस्ती भी अजीब है
कभी बूढी नहीं होती
आज भी जब मिलते हैं
तब भी वही बचपन के रंग
ढंग दिखते हैं
वही जवानी की खिलखिलाहट
अजीब दास्ताँ है इसकी
वही छेड़छाड
वही हंसी मजाक
वही मजेदार किस्से
जब पुराने दोस्त मिलते हैं
तब उम्र भूल जाती है
अपनेपन पर आ जाते हैं
मुखौटा जो ओढ रखा है गंभीरता का
उसके पीछे अंदर का बच्चा कुलमुलाने लगता है
दोस्तों के संग वह बाहर आ जाता है
अपना रंग - ढंग दिखाने लगता है
यह दोस्ती भी अजीब है
कभी बूढी नहीं होती
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Monday, 4 January 2021
यह दोस्ती भी अजीब है
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