जमाना बदला है
पहले धोती थी अब पैंट है
वे अनपढ़ थे आज पढे - लिखे हैं
हाॅ यह बात जरूर थी
उनकी शिक्षा जीवन की पाठशाला में हुई थी
मैं बरसों बाद गांव आई हूँ
गाँव तो वही है
पर वह बात नहीं है
सब बदला - बदला सा है
विकास की डगर पर चल पडा है
शौचालय बन गए हैं
पक्के मकान बन गए हैं
सब्सिडी मिल रही है
पेंशन और दूसरी सरकारी योजना का फायदा मिल रहा है
हर महीने खाते में पैसे आ रहे हैं
अच्छी बात है विकास की धारा भारत के हर कोने में बहें
नया यह है कि अब नजरिया बदला है
अब मेहनत और खेती नहीं भा रही है
जब राशन पर अनाज मिल रहा हो
औने - पौने दामों में
कभी-कभी विपदा में फ्री भी
तब तो किसान का बेटा भी खेती करना नहीं चाह रहा
हर हाथ में मोबाईल और हर किसी के पास बाइक
तब सुबह उठ कर ही
खरहरा लेकर द्वार साफ किया जाता था
आज द्वार पर कोई झांकता नहीं
वह साफ रहें या गंदा रहें
कितने खेत बिना बोएं पडे हैं
पशु कोई पालना नहीं चाहता
मनरेगा तो हैं ही
मांस - मदिरा का दौर हर रोज
यह विकासशील भारत की तस्वीर
यहाँ भूखा कोई नहीं
न कोई गरीब है
सब सरकार पर आश्रित है
राजनीति जम कर
हर एक खिलाड़ी
जो जितना देगा वह उतना वोट पाएंगा
सब अपनी जेब गरम कर रहे हैं
हाॅ पर यह कितने समय तक
टैक्स पेयर टैक्स भर रहा है
सरकार उसको बांट रही है
आलसी बना रही है
सारा भ्रष्टाचार जोर - शोर से
बदलाव नहीं बेकार हो रहे हैं
आज वह प्रेम नहीं रहा
अब सब मगरूर बन रहे
अब शहरीकरण पैठ बना रहा है
वह तो ठीक है
आधुनिकता बुरी नहीं है
आधुनिकता के नाम पर आलसीपन
वह भविष्य के लिए ठीक नहीं है
गाँव , गाँव ही रहें
अपनी ओरजिनलिटी न खोएं
शहर , शहर ही रहें
अपनी ही रफ्तार में भागता - दौड़ता
तब ही भारत की विकास यात्रा दौड़ेगी
एक पक्षियों की चहचहाहट से गूंजे
दूसरा रफ्तार की घर्र घर्र से
समतोल हो दोनों में
दोनों का स्वभाव बना रहे
अनुकरण नहीं पूरक हो
एक जगह फसल लहलहाएं
दूसरी जगह आइ टी का परचम
काम सबको मिले
मुफ्त का पैसा नहीं
मेहनत का श्रम का फल मिलें
तब ही सही मायनों में भारत , भारत रहेगा
उसकी असली पहचान खेत और कृषि
वह कहीं इस चकाचौंध में खो न जाएँ
अन्नदाता अपना कर्म न भूल जाए
जय जवान
जय किसान
जय विज्ञान
इन तीनों का हो अभिमान
तब ही हो भारत का असली विकास
No comments:
Post a Comment