मुझे सीता नहीं बनना था
वन गमन किया पति के साथ
महलों का एश्वर्य त्यागा
रावण द्वारा अपहरण हुआ
अग्नि परीक्षा भी देनी पडी
फिर भी मुझे स्वीकार नहीं किया गया
इसी समाज ने लांछन लगाया
पति द्वारा गर्भावस्था में त्यागी गई
हो सकता है यह एक राजा की मजबूरी हो
राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम बनें
मुझे धरती माँ की गोद में शरण लेना पडा
अगर मैं पुरूष होती तब
तब तो मैं भगवान कहलाती
अर्धरात्रि को सोती हुई पत्नी और बेटे को छोड़ बोधि ज्ञान की प्राप्ति की खोज में
आए लौट कर तो भिक्षुक के रूप में
सिद्धार्थ तो भगवान बन गए
वहीं अगर मैं करती तब
पति और बच्चे को छोड़ निकल जाती
तब तो समाज न जाने क्या-क्या लांछन लगाता
मीरा ने राजमहल छोडा
न जाने मारने के कितने यतन हुए
फिर भी वह ईश्वर की भक्त बनी रही
उन्होंने ईश्वर के लिए छोड़ा
हमने अपने पति के लिए त्याग किया
राधा ने कान्हा से प्रेम किया
वह गोकुल को नहीं छोड़ी
कृष्ण हमेशा राधा के ही रहें
यशोधरा , सीता , मीरा और राधा
दो ने पत्नी धर्म निभाया
दो ने बस प्रेम निभाया
हम परित्यक्ता रही
पति हमारे पुरुषोत्तम और भगवान बने
यह सब हुआ
हम औरत थी इस पुरूषवादी सोच की परिणति ।
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