चले गए तुम रोहित सरदाना
मन स्वीकार नहीं कर पा रहा
तुम्हारी आवाज कानों में गूंजती है
एक तेज - तर्रार युवा पत्रकार
डिबेट में तो सबको तार - तार कर देते थे
किसी से न हारने वाला जिंदगी से हार गया
आज तक करते - करते आज को छोड़ चले
अब तो कल में ही रह गए
सब बातें कल की हो गई
सबको डरा गए
सबको हिला गए
जब - जब आज तक देखेंगे
कहीं न कहीं तुम्हारी कमी तो खलेगी
पता नहीं यह किस - किसको निगलेगा
किसकी सांसों की डोर को तोड़ेगा
अपने पीछे न जाने कितने सवाल छोड़ गए
बिना पूछे ही उन सवालों का जवाब किसी न किसी को तो देना ही पडेगा
उन दो मासूम बच्चियों का
जिसके तुम पिता थे
उनका भविष्य ?,
प्यार से मरहूम
जब हम देशवासी आहत है यह खबर सुनकर
विश्वास भी नहीं होता
तब तुम्हारा परिवार ??
बहुत बडी क्षति है
देश के लिए
पत्रकारिता जगत के लिए।
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