Sunday, 2 May 2021

कब तक अतीत को कोसोगे

लोग कहते हैं  भूल जाओ
भूलना इतना आसान  ??
जिसने अपने परिजनों  को  खोया है
इस त्रासदी  को झेला है
वह कैसे भूल पाएगा
इस उम्र  में  तो संभव नहीं

मौत तो आनी है
वह तो अटल सत्य  है
पर इस तरह
ऑक्सीजन  के अभाव में
डाॅक्टर  के अभाव  में
इंजेक्शन  के  अभाव  में
अस्पताल  के अभाव में
एंबुलेंस  के अभाव  में
दवाईयों  के  अभाव  में

वह तो ताउम्र सोचता रहेंगा
अगर ऐसा होता तो
यह उपलब्ध  होता तो
हम कुछ  नहीं  कर पाए अपनों  के  लिए

जो माँ  बेटे का शव लेकर रिक्शा में  गई हो
जो पिता अपने बेटी का शव कंधों पर  लादकर पहुंचा हो
श्मसान  घर में  इंतजार  किया हो घंटों
आखिरी समय में  मुख न देख पाया हो
अपनों  का क्रियाकर्म  न कर पाया हो
काँधे  देनेवाले चार लोग न मिले हो
एक अस्पताल  से दूसरे अस्पताल  का चक्कर  लगाते - लगाते हार गया हो
जो पत्नी  अपने पति को कोई  चारा न देख मुंह  से सांस देने की कोशिश  कर रही हो

और यह नहीं  कि यह कमजोर  तबके के साथ ही हुआ है
पैसा - रूपया और रूतबे वालों  का भी यही हश्र हो रहा है
डाॅक्टर  होने के बावजूद  उसी के लिए बेड उपलब्ध  नहीं

कल ईश्वर  करें
इस महामारी  का  अंत भी हो जाएंगा
जीवन पटरी पर चलने लगेगा
पर एक प्रश्न चिन्ह  तो छोड़  ही  रहा है
देश के विधाताओ  और कर्ण धारों  के समक्ष
क्या यह सिस्टम  का फेलियर नहीं  है
क्या  इसके लिए  सरकार  जिम्मेदार  नहीं  है
जवाबदेही  तो बनती है
अब वक्त  बताएंगा
ये क्या करने वाले हैं??
विकास  का ढांचा  किस तरह तैयार  करने वाले हैं?
मंदिर  , मस्जिद  , स्टेच्यू  या फिर अस्पताल
नेता , बाहुबली , कार्यकर्ता
    या
डाॅक्टर  , नर्स  , पैरामेडिकल  स्टाफ

बहुत  हो चुका 
अतीत को कोसकर
अब तो सचेत हो
कुछ  स्वयं  भी करो

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