वह चुप है
वह खामोश है
बोलना चाहकर भी बोल नहीं पाती
डरती है कौन विश्वास करेंगा उस पर
कहीं दोषी वह न ठहराई जाएं
संदिग्ध नजरों से उसे न देखा जाएं
उस पर तोहमत न लगा दिया जाएं
कहने को तो सब अपने है
पर खून का रिश्ता तो नहीं है न
वह तो पराए घर से आई
उस घर के मर्द पर ऊंगली उठा रही है
इतनी हिम्मत कैसे हुई
वह डर रही है
सो न पाई रात भर
यह सोच - सोचकर
उसने कुदृष्टि डाली थी
वह उस घर का बडा बेटा था
दूसरे क्या विश्वास करें
उसका पति ही विश्वास न करेंगा
इस युग में राम भी तो नहीं है
जो ऐसे बालीयो का वध करें
चुप बैठना विवशता है
समाज का ढांचा ही इस पर टिका है
औरत ही दोषी
उसका ही चरित्र दागमय
तब चुप रहने में ही भलाई
सबकी इज्जत बनी रहेंगी
वैसे ही इज्जत का ठेका औरतों के जिम्मे ही है न
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