मैं कभी कुछ बोल क्यों नहीं पाती
आज भी और पहले भी
मैं इतनी संकोची कैसे 
मैं इतनी डरपोक कैसे
मुझे पूजनीय  तुलसी बना दिया गया
मुझे अहिल्या से शिला बना दिया गया
मुझे सीता बना निर्वासित कर दिया गया
मुझे देवकी बना अपने ही भ्राता द्वारा कारागार में डाल दिया गया
मुझे गांधारी बना दिया गया 
मुझे यशोधरा बना दिया गया पति की राह में बाधा
मैं चुप रही सहती रही
हाँ कभी-कभी मैंने भी आवाज उठाई
जब मैं अंबा की तरह प्रतिशोधी बनी 
देवव्रत से बदला लेने के लिए जन्म पर जन्म 
जब मैं कैकेई बनी 
अपने पुत्र के अधिकार के प्रति 
मैं सुपर्णखा बनी 
अपने नाक - कान काटे जाने का बदला
मैं द्रौपदी बनी जो महाभारत के युद्ध का कारण 
तब तब मुझे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया 
मैंने भी वह लडाई जारी रखी
पद्मिनी बन जौहर
लक्ष्मी बाई बन अंग्रेजों से लोहा लेना
कैप्टन लक्ष्मी सहगल बन सुभाषचंद्र बोस का साथ देना
इंदिरा बन इतिहास का नक्शा ही बदल देना
यह मेरी यात्रा का सोपान है
फिर भी कहीं न कहीं कुछ आडे आ जाता है
मैं अब भी कभी-कभी चुप रह जाती हूँ 
अन्याय का प्रतिकार नहीं कर पाती
मी टू  मुहिम में  चाहते हुए भी भागी नहीं बन पाती
क्योंकि  कहीं न कहीं 
वह डरपोक औरत मुझमें जिंदा है
जो बरसों से दबाई और कुचली गई है 
अभी और कितना वक्त लगेगा 
यह तो पता नहीं 
पर यह निश्चित है
       वह वक्त भी आएगा। 
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