Friday, 22 October 2021

घर समझे तो अपना है

वह एक बडे नाजो से पली - बढी चिडिया थी
दिखने में भी सुंदर थी
जो देखता आकर्षित हो जाता
नाजुक सी  कोमल सी
एक दिन किसी को भा गयी
वह उसे अपने यहाँ ले आया
बडे बडे महल चहारदीवारी से घिरा
जाली लगी हुई
अंदर सब सुख - सुविधा
विभिन्न तरह के पेड - पौधें
हरी हरी टहनियां
तरह तरह  के फल
उस पर कोई पाबंदी नहीं
यहाँ से वहाँ घूमती
खुश रहती
उसे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ
इस चहारदीवारी को तोड़ बाहर जाएं
वह उसी में  संतुष्ट है
उसे कोई बडी उडान नहीं भरना है
पंख फैलाना है
वह चाहती कोशिश करती
शायद सफल भी होती
उसे नहीं करना है सब
उसे नहीं भटकना है यहाँ वहाँ
एक सुरक्षित जीवन मिला है
उसको क्यों खोएं
हाय - हाय क्यों करें
असंतुष्टि का परिणाम कौन जाने क्या
सम्मान है
अधिकार है
वह तो समझने का फेर है
वह  समझे तो गुलामी है
घर समझे तो अपना है ।

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