Sunday, 31 October 2021

यह जीवन है

यह जीवन है
यहीं  रणक्षेत्र
यहीं धर्मक्षेत्र हैं
हैं हम इस धरा के वासी
यहीं हमारा कुरुक्षेत्र हैं
हर पल लडना है
जीवन अनिश्चित है
कौन कब काल बन कर टूटेगा
यह अनिश्चित है
यहीं महाभारत का रण है
नहीं किसी पर विश्वास
सब एक - दूसरे के दुश्मन है
सबके मन में कोई न कोई कसक समाई
सब एक - दूसरे से बदला लेने को आतुर
मिलते हैं बडे प्रेम से
मन में ईष्या की ज्वाला धधकती है
हर कोई मौका तलाश रहा
किसी को नीचा दिखाने का कोई कसर नहीं छोड़ रहा
हर दूसरा दुर्योधन
हर दूसरी द्रोपदी है
मान - अपमान की आग में झुलसते हैं
बदला लेने को आतुर
व्यंग्य बाण छोड़ने में पारंगत
कब किसका हथिया ले
कब किसकी मेहनत की कमाई पर डाका पड जाय
कब भरी सडक पर इज्जत उतारी जाय
लोग मुकदर्शक बन देखते रहें
सर नीचा कर वहाँ से खिसक ले
यह एक ऐसा चक्रव्यूह है
जहाँ अभिमन्यु तो एक है
जयद्रथ बहुत सारे हैं
यहाँ न विदुर हैं न कृष्ण हैं
बस स्वार्थ में लिपटे लोग हैं
राजतंत्र और प्रजातंत्र
दोनों के बीच पीसता सामान्य जन
जीना इतना आसान नहीं
यह जीवन है

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