आज सुबह ऑख खुली तो घर में कोई हलचल नहीं
सोचा अब उठ जाऊं सात बज रहे हैं
पानी आने का समय हो गया है
उठी तो हाॅल में आई वहाँ पति देव नहीं फिर कहाँ होंगे
शायद बाथरूम में
वहाँ से भी कोई आवाज नहीं
ये महाशय तो भोर चार बजे ही उठ जाते हैं वाॅकिग को जाते हैं फिर योगा करते हैं
खटर पटर होता ही रहता है
मैं अलसाई सी पडी रहती हूँ फिर कोई चारा न देख छह बजे तक उठ ही जाती हूँ
सात बज गए आए नहीं
ऐसा तो कभी हुआ नहीं
जी घबराने लगा
सोचा क्या करू किससे पूछू
मोबाइल भी नहीं ले जाते हैं
भगवान को मनाने लगी
कुछ अनहोनी न हो
दरअसल फेसबुक पर कल एक होटल मालिक को कुर्सी पर बैठे बैठे ही हार्ट अटेक आया और चल बसे
यह दृश्य देखा था
डर लगने लगा
तब तक डोर बेल बजी
दरवाजा खोला भागकर
ये महाशय खडे थे
पूछा तो भडक गए
आज देर हो गई
छह बजे तो सो कर उठा और न जाने क्या क्या बोल गए
टोकना टाकना इन्हें नहीं भाता
मैं मंद मंद मुस्कुरा रही थी इनके गुस्से का बुरा नहीं लगा
चाय पीकर जब बैठी तब सोचने लगी
कब क्या हो जाए कहाँ नहीं जा सकता
हम ताउम्र डरते रहते हैं
होनी भी होकर ही रहती है
पल भर में क्या हो पता नहीं
फिर भी हम जीवन सहेजते रहते हैं
यह भी पता है
उसकी मर्जी बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता
न जाने क्या-क्या सपने बुनते हैं
मौत को जानते हुए जीवन को भी जीते हैं
बारूद के ढेर पर खडे हैं और नीले आसमान तथा हवा का आनंद ले रहे हैं
सोचते हैं समझते हैं
कल्पना करते हैं
क्योंकि हम कोई साधारण जीव नहीं मनुष्य हैं
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Wednesday, 10 November 2021
हम कोई साधारण जीव नहीं मनुष्य हैं
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