जब माँ के गर्भ में बच्चा होता है
तब वह अंधकार की खोह में होता है
वहाँ से बाहर आने को छटपटाता है
जब तक अंदर तब तक नीरव शांति
जैसे ही प्रकाश में आता है
रोना शुरू कर देता है
बाहर की दुनिया से परिचित होने लगता है
कुछ देर बाद हंसता है
मुस्कराता है
यह प्रकाश उसको भला लगने लगता है
अब वह अंधकार में नहीं रहना चाहता
तभी तो संझा होते ही दीया बाती किया जाता है
लाइट और बल्ब जलाया जाता है
यह अंधकार से प्रकाश की ओर बढने की एक कडी है
और इसका कोई मौका वह नहीं छोड़ता
तभी तो दीपावली में वह हर एक कोने में दीया जलाता है
उस रोशनी से अपने घर आंगन को प्रज्वलित करता है
वह हमेशा प्रभात की ही प्रतीक्षा करता है
यह प्रभात होते ही वह तरोताजा हो जाता है
प्रकाश को वह प्रणाम करता है
अंधकार को सब दूर भगाना चाहते हैं
घर हो या जीवन
हमेशा रोशन रहे
इसके लिए अनवरत प्रयास
वह ताउम्र करता है
कोशिश यही रहती है
अंधकार का साया तक न रहें
अंधेरा भी तो स्थायी नहीं
हर अंधेरे की सुबह तो होगी ही
दीप तो प्रज्वलित होगे ही
दीपावली भी मनेगी
बस प्रयास जारी रहे
अंधेरे की इतनी भी हिम्मत नहीं
उजाला को रोक सकें
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