तुम सिंदूर मत लगाओ
बिंदी मत लगाओ
चूडियां औ नथ मत पहनो
बिछिया और पायल की भी कोई जरूरत नहीं
तुम्हें सजने और संवरने की भी कोई कोई जरूरत नहीं
तुम तो हर हाल में मुझे सुंदर लगती हो
सौंदर्य की मूरत लगती हो
तुम मेरे मन मंदिर में निवास करती हो
यह सब करना हो तो करों
वह तुम्हारी मर्जी
अगर यह सब बेडियाँ लगती है तो मत धारण करो
सोलह श्रृंगार बिना भी तुम दिखती लाजवाब
कर लिया अगर श्रृंगार तब तो सोने पर सुहागा
इतनी रूपसी तो स्वयं ही हो
बिना पायल के ही तुम्हारी चाल में रून झुन की आवाज आती है
बिना काजल के ही तुम्हारे नैन कजरारे लगते हैं
बिना बिंदिया के ही तुम्हारा माथा दम दम दमकता रहता है
चूडी और कंगना की खनखन से ज्यादा खनखनाहट तुम्हारे हंसी की प्यारी लगती है
सुहाग के चिन्ह की क्या जरूरत जब साक्षात सुहाग ही समक्ष हो
स्वर्ण का गहना हो या फूलों का सादा गजरा
हर रूप तुम्हारा लगता प्यारा
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